मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

लहरी ढूंढें लहर को ,कपड़ा ढूंढें सूत , जीवा ढूंढें ब्रह्म को ,तीनों ऊत के ऊत

Image result for upnishad pictures onlyImage result for upnishad pictures onlyImage result for upnishad pictures onlyImage result for upnishad pictures only










लहरी ढूंढें लहर को ,कपड़ा ढूंढें सूत ,

जीवा ढूंढें ब्रह्म को ,तीनों ऊत के ऊत। 

कबीरदास कहते हैं स्वयं सागर लहरों को ढूंढ रहा है। जबकि दोनों का 

सत्य जल है। 

ocean is searching the wave wherein the underlying reality of both 

is the water .similarly the cloth is searching the fabric ,the yarn .In 

the same fashion the jeevaatmaa is searching the Braham .

All the three are fools what the jeevaa is searching is what jeeva is 

himself .You are what you are searching .

आत्मा जब मन बुद्धि शरीर तंत्र में आ जाता है तब जीवात्मा कहलाता 

है। ये आत्मा ही ब्रह्म है बीच में अज्ञान का पर्दा (माया- रुपीशरीर मन 

बुद्धि 

तंत्र )आ जाने से यह अपनी असली पहचान भूल गया है.जबकि माया 

परमात्मा की शक्ति है जिससे वह इस  जगत का खेल रचता है। अपनी 

असली पहचान सर्वव्यापक सनातन चेतना को भूलकर यह जीव जन्म 

मरण के चक्कर में फंस गया है।  यही इसकी मूर्खता है। 

In reality I myself is the eternal truth ,the all pervading universal 

consciousness that is eternal and is the underlying principle (truth 

)of all the objects of this universe including 

Maya.

.It is this "I"(the all knowledge ,the all pervading principle ) which 

illuminates the Maya also .

I am neither the scene nor the seer ,nor the process of seeing ,I am 

what is illuminating these three states yet am  none of these .

कबीर का यह पद सभी उपनिषदों का सार है। जो हमारे अज्ञान को दूर 

करता 

है वही ज्ञान ,उपनिषद है।

जो ज्ञान मुझे मेरे जो सबसे निकट है यानी स्वयं मेरा सनातन 

अस्तित्व  (self 

)उसका बोध  निश्चित तौर 

पर कराता है बिना किसी संदेह के ,जो मेरे अज्ञान को दूर करता है वही 

उपनिषद है।

उप +नि +षद 

उप जो मेरे सबसे निकट है यानी स्वयं मैं "I"THE SELF 

नि -माने सुनिश्चित, विदाउट डाउट 

षद -जो नष्ट करता है (विचरण ,गति ,अवसादन ये तीन अर्थ हैं इस 

उपसर्ग षद के )किसको नष्ट करता है ,मेरे अज्ञान को कि मैं शरीर नहीं हूँ। 

वही 

ज्ञान उपनिषद है। इसी में वेदों का सार है। 

इसलिए 

बंधू -बांधवियों उपनिषद पढ़ो।  

जय श्रीकृष्णा ! 

2 टिप्‍पणियां:

  1. nice post.
    शादी शुदा लोगो से छमा चाहता हूँ उनकी कुछ बाते शेयर कर रहा हूँ . लेकिन अब मुझसे उनका दर्द देखा नहीं जाता है और अपने कुछ युवा मित्रो से जिन्होंने अभी शादी नहीं की है उनसे ये अपील करता हूँ की जितनी जल्दी हो ये पोस्ट अपने मित्रो के साथ शेयर करे हो सकता है की उनकी जिन्दगी सुधर जाये !
    एक आदमी ने अपना दर्द कुछ इस शब्दों में बयां किया !

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/2014/10/blog-post.html

    Please visit here also for more Hindi poems.
    http://rishabhpoem.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं