बुधवार, 10 दिसंबर 2014

क्यूँ.....


इतने सवाल क्यूँ हैं
सोच सोचती क्यूँ है
जीवन क्यूँ है
क्यूँ
क्यूँ
क्यूँ
क्यूँ
क्यूँ
क्यूँ
क्यूँ
क्यूँ  क्यूँ.......
         
अब आप कहेंगे ये तो कविता न हुई
परिभाषा में सिमट के रहूँ ...क्यूँ....
दुनियाँ में कुछ लोग राम और कुछ लोग रहीम
और कुछ ईसामसीह का जाप करते हैं
मगर ये 'क्यूँ' शब्द हर मनुष्य जन्म से मृत्यु तक
दोहराता रहता है मुख से या दिल में
यही जिज्ञासा है यहीं से ज्ञान की उत्पत्ति होती है
इसी से बुद्धिमत्ता का प्रारंभ है
इसी से विज्ञान है
तो ये काव्य क्यों नहीं ?
                                                        ......इंतज़ार      

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