अब तलक तो फूल से....
टक टकी लगाके जिसने भी देखा
उसको लैला समझ बैठा हूँ मैं
वो राधिका है....प्राण प्यारी और
खुद को छैला समझ बैठा हूँ मैं
अब तलक तो फूल से ही पत्थरों सी
ठोकरें लगती रहीं हैं दोस्तों
अब जिन्दगी के ताश में....हर
नहले को दहला समझ बैठा हूँ मैं
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-02-2015) को "बम भोले के गूँजे नाद" (चर्चा अंक-1891) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंसुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सूंदर...
जवाब देंहटाएंवो राधिका है....प्राण प्यारी और
खुद को छैला समझ बैठा हूँ मैं
http://themissedbeat.blogspot.in/?m=1