गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

धनिया बेचते है......















स्कूल तो कभी गये ही नही है ये,,                                        
हिसाब-किताब,मोल-भाव सब दुनिया से ही सीखते है ..
...
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

घर मे शायद कोई खिलोना मिला ही नही इन्हे,
ये खुद घर भर को अपने पसीने से सीचते है..
...............
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

चाकलेट-टाफी, चाट-पकोडी की इन्हे जरूरत ही नही
खुद की मेहनत के १० रु को मुट्ठी मे कसकर भीचते है..
... ..........    
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

मुह से आइस्क्रीम साफ करने को टिशु पेपर नही है इनके पास
ये कमीज की आस्तीन से अपने माथे का पसीना पोछ्ते है...
.....................
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

पूरी मन्डी ने किया है इनकी मेहनत को सलाम..
मन्डी मे धनिया बेचना है केवल इन्ही काम..
पर ये बच्चे मुझे बच्चो से दीखते है 
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ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

शायद इन्हे पता ही नही कि ये बच्चे है 
इस बचपन मे ये खुद मे बडो को खोजते है ..
..................
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है



-जितेन्द्र तायल
 मोब. ९४५६५९०१२०

2 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-04-2015) को "अरमान एक हँसी सौ अफ़साने" {चर्चा - 1943} पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आप जैसे वरिष्ठ व्यक्तित्व से उतसाह वर्धन पाकर मिली प्रेरणा के लिये दिल से आभारी हुं

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