मित्रों आज मुझे अमन 'चाँदपुरी' द्वारा भेजी गयी
एक लघुकथा प्राप्त हुई।
अमन 'चाँदपुरी' एक नवोदित हस्ताक्षर हैं।
जिनका परिचय निम्नवत् है-
नाम- अमन सिहं
जन्मतिथि- 25 नवम्बर 1997 ई.
पता- ग्राम व पोस्ट- चाँदपुर
तहसील- टांडा
जिला- अम्बेडकर नगर
(उ.प्र.)-224230
संपर्क : 09721869421
ई-मेल : kaviamanchandpuri@gmail.com
लघुकथा-'वाह रे हरिश्चन्द्र'
विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी के सामने
से मैं अपने कुछ मित्रों के साथ कुलपति महोदय से कुछ काम के सिलसिले से मिलने जा
रहा था, तभी पीछे से किसी ने आवाज लगायी- 'रुकिये !'
हम
लोग रुके, मुड़कर देखा तो पुलिस की वर्दी सा कपड़ा पहने चपरासी (प्यून) खड़ा था। उसी ने हमें आवाज लगायी थी।
तभी चपरासी (प्यून) पास आकर बड़ी विनम्रता से बोला - 'लीजिए आपका पर्स अभी गिर गया था।'
मैंने अचम्भित होकर कहा - 'मेरा तो कोई पर्स नहीं गिरा, मेरा पर्स मेरे पास ही है। ये किसी दूसरे का होगा।'
चपरासी (प्यून) भी अचम्भित होकर बोला - 'आपका नहीं है।'
मैंने कहा - 'हाँ ! मेरा नहीं है।'
इतना कहते ही मैं फिर से मुड़कर लम्बे-लम्बे कदमों से अपनी मंजिल की ओर चल पड़ा।
तभी एक मित्र ने कहा - 'यार तूने पर्स क्यों नहीं लिया। उसमें चार लाल-लाल हजारे की, कुछ पीली-पीली इसके अतिरिक्त भी कई नोटें दिखाई दे रही
थी। पूरा कम से कम सात हजार तो था ही।'
मेरा उत्तर था - 'वह ईमानदारी के साथ पर्स मुझे दे रहा था। उसके हिसाब से वो पर्स मेरा था। अगर चाहता तो पर्स अपने पास भी रख सकता था। उसे हल्ला मचाने की क्या जरूरत थी कि मैंने पर्स पाया है। मगर उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि वह ईमानदार था, फिर मैं उस पर्स को लेकर बेइमान क्यों बनूँ।
सभी मित्र मेरा उत्तर सुनकर खिल खिलाकर हँस पड़े। और एक मित्र ने मजाकिया भाव से कहा -
'वाह रे मेरे हरिश्चन्द्र !'
- अमन चाँदपुरी,
रचनाकाल - 2012
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