रविवार, 28 जून 2015

माँ

कितना दुख अंंगीकार कर
नवमास का तप स्वीकार कर
जलपान के परहेज के मध्य
हृदय मेंं धारण किये संंकल्प
धरती पर उतारा किलकता नन्हा
नन्हा
वो नन्हा
जिसके नवनेत्र थे जग से अनजान
अंंग अंंग मेंं समाये थे
युग को परिवर्तित करने की शक्ति
पर वो था एकदम बेजान
भीषण ग्रीष्म मेंं तपते आम्र वृक्ष के मानिंंद
जो पानी के अभाव मेंं सूख जाये
मांं ने रूई के फाहे लेकर दूध मेंं
और उस फूल से होंंठो के बीच
बूंंद देकर नन्हे जीवन का पोषण किया
दिन प्रतिदिन अनगिनत मर्तबा
कपडे गीले हो जाते मलमूत्र से
निश्छल मन से सफाई करती
जब भी मुन्ना रोने लगता और चुप न होता
वह भी भर आती आंंखोंं मेंं आंंसू
लिए ममता व करूणा से
और कुछ छण भी दूर नहींं होने देती
लाडले को अपने आँचल की साये से
चूमती पूचकारती खिलाती नहलाती
बैठकर आँचल मेंं लिए सुलाती
तब तक सोती नहींं
जब तक मुन्नर सो न जाए
कितना स्नेह करती है वो अपनी बच्चे से
यही है उसकी ममता
और इसिलिए वो है मांं……………

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