शनिवार, 27 जून 2015

एक ग़ज़ल : तेरे बग़ैर भी...

तेरे बग़ैर भी कोई तो ज़िन्दगी होगी
चिराग़-ए-याद से राहों में रोशनी होगी

कहा था तुमने हमेशा जो साथ देने का
ये बात मैने ही तुमसे ग़लत सुनी होगी

निगाह-ए-शौक़ से मैं हर्फ़ हर्फ़ पढ़ लूँगा
लबों पे बात जो आ कर रुकी रुकी होगी

यहाँ से ’तूर’ बहुत दूर है मेरे ,जानाँ !
कलाम उनसे कि तुमसे ,वफ़ा वही होगी

सितम का दौर भी इतना न आजमा मुझ पर
अगर मैं टूट गया फिर क्या आशिक़ी होगी !

तमाम बन्द भले हो गए हों दरवाजे
मगर उमीद की खिड़की तो इक खुली होगी

कहाँ कहाँ न गया चाह में तेरे ’आनन’
मेरे जुनूँ की ख़बर क्या तुझे कभी होगी ?

-आनन्द.पाठक-
09413395592

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें