गुरुवार, 25 जून 2015

सुख

सुख की अकांक्षा है
तो उस मार्ग पे पग बढ़ाना सीखो
जिसका पड़ाव सुख है
और प्रारम्भ दुख ।
उस तक पहुंचने से पहले
आने वाले कठिनाईयों से
रखो जूझने व लड़ने की साहस ।
सुख के प्रत्येक मार्ग
दुख व पीर से निकल कर जातें हैं
क्योंकि दुख व पीड़ा की अति
प्रेरित करती है सुख का आसरा ढूढ़ने को।
और
अकर्म अनुचित व अनैतिक कर्म
निकलने ही नहीं देते
दुख की खाई से ।
आओ संकल्प लें
कांटों को चूमने का
अगर गुलाब पाना है।
आओ प्रण करें
अंधेरे को स्वीकार करने का
अगर प्रभात का आलिंगन करना है।
आओ शपथ लें
सूर्य की रौशनी से दृष्टिी मिलाने का
अगर चांदनी में नहाना है चांद की तो ।

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