शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

अन्यत्र कई उपनिषदों में कहा गया है -वह कान भी कान है (श्रवण का भी श्रवण है )आँख की भी आँख है

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धनञ्जय यादव की फ़ोटो.



नासा  के वैज्ञानिको ने अनेक अनुसंधानो के बाद यह Deep Space मे यंत्रो द्वारा सूर्य मे हर क्षण होने वाली एक ध्वनि को Record किया है |उस ध्वनि को सुना तो तो वैज्ञानिक चकित रह गए क्यूंकि ये कुछ और नहीं अपितु भारतीय संस्कृति की वैदिक ध्वनि *ॐ* थी |

आश्चर्य इस बात का था कि जो ध्वनि मनुष्य अपने कानो से नहीं सुन सकता उसको ऋषियों ने सुना | सामान्य मनुष्य 20-20000 Hz की ध्वनियों को ही सुन सकता है |इतनी ही हमारे कान की श्रवण शक्ति है |इंद्रियो की एक सीमा होती है उससे कम या अधिक मे वह कोई जानकारी नहीं दे सकती है |
वैज्ञानिको का आश्चर्य वास्तव मे *समाधि* की उच्च अवस्था का चमत्कार था जिससे ऋषियों ने वह ध्वनि सुनी अनुभव की और वेदो के हर मंत्र से पहले उसे लिखा और महामंत्र बताया |
ऋषि कहते है ये ॐ ध्वनि परमात्मा तक पहुचने का माध्यम है उसका नाम है |महर्षि पतंजलि कहते है *तस्य वाचक ? प्रणव * अर्थात परमात्मा का नाम प्रणव है , प्रणव यानि कि ॐ |
प्रश्न यह उठता है कि सूर्य मे ही ये ध्वनि क्यूँ हो रही है ? इसका उत्तर *गीता * मे दिया गया है | भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है -*जो योग का ज्ञान मैंने तुझे दिया ,यह मैंने आदिकाल मे सूर्य को दिया था |* देखा जाए तो तभी से सूर्य नित्य-निरन्तर मात्र ॐ का ही जाप करता हुआ अनादिकाल से चमक रहा है |या जाप सूर्य ही नहीं , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कर रहा है |

मंडलम देवयजनं दीक्षा संस्कार आत्मन :। 
परिचर्या भगवत आत्मनो दुरितक्षय : ॥ 

The sun globe is the place where the Supreme Lord is worshiped ,spiritual initiation is the means of purification for the spirit soul ,and rendering devotional service to the Personality of Godhead is the process for eradicating all one's sinful reactions.(Bhagvad Puran Canto 12 ,Ch.11 ,Text 17)

शुको यदाह भगवान् विष्णुराताय शृण्वते । 
सौरो गणो मासि नाना वसति सप्तक :  

तेषां नामानि कर्माणि नियुक्तानामधीश्वरैः । 
ब्रूहि न : श्रद्धधानानां व्यूह सूर्यात्मनो हरे :॥ (Bhagavd Puran Canto 12 ,Ch 11 ,Texts 27& 28 )

Shri Shaunak  said :Please describe to us ,who have faith in your words ,the different sets of seven personal features and associates the sun -god exhibits during each month ,along with their names and activities .The associates of the sun -god ,who serve their lord ,are personal expansions of the Supreme Personality of Godhead Hari in His feature as the presiding deity of the sun .

Purport :
After hearing an account of the exalted conversation between Shukadeva Gosvami and Maharaj Parikshit ,Shaunaka now inquires about the sun as the expansion of the Supreme Lord .Although the sun is the king of all planets ,Sri Shaunaka is specifically interested in this effulgent globe as the expansion of Sri Hari ,the Supreme Personality of Godhead .

The personalities related with the sun are of seven categories .In the course of the sun's orbit their are twelve months ,and in each month a different sun -god and a different set of six associates preside .In each of the twelve months begining from Vaishakha there are different names for the sun-god himself ,the sage ,the Yaksha ,the Gnadharva ,the Apsara ,the Raksha and the Naga ,making a total of seven categories.

इसी भागवद पुराण के बारहवें स्कंध के ग्यारहवें  अध्याय के श्लोक छ :,सात और आठ में भगवान के विश्वरूप का बखान करते हुए कहा  गया है :ये पृथ्वी भगवान के चरण (पैर ,पाद )आकाश उसकी नाभि (navel ),सूर्य उसके नेत्र ,वायु उसकी नासिका के छिद्र (nostrils ),सृष्टि करता देव उसके प्रजनन अंग ,मृत्यु उसकी गुदा ,तथा चन्द्रमा उसका मस्तिष्क हैं। 

आकाशीय ग्रह उसका मस्तक(Head ) हैं .दिशाएं उसके दोनों कान हैं तथा विभिन्न ग्रहों के रक्षक देवगण  उसकी भुजाएं हैं। मृत्युदेव उसकी भवें (eyebrows ),शर्म (शर्मोहया )उसका निचला होंठ तथा लोभ उसका ऊपरवाला औष्ठ (होंठ )हैं। माया (delusion ,God's illusory energy )उसकी मुस्कान तथा चांदनी उसकी मुक्तावली (teeth )है। वृक्ष उसके शरीर का रोम(bodily hairs ) हैं। मेघ उसकी  केशराशि हैं। 

अन्यत्र कई उपनिषदों में कहा गया है -वह कान भी कान है (श्रवण का भी श्रवण है )आँख की भी आँख है ,वाणी का  सम्भाषण वही है। वही है जो मन को सोचने की क्षमता देता है जिसके द्वारा मन सोचता है विचार सरणी पैदा करता है। 

अनादिकाल से सूर्य ओम (ॐ )का जाप कर रहा है 

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