सोमवार, 21 सितंबर 2015

यह कृपा आपको भ्रमित करने वाली है आपकी सकाम सेवा साधना का फल है। यही तो माया है और उसका कुनबा जो हमें भ्रांत किए रहता है


यह पिंजरा जिसमें हम कैद हैं दुर्गा का है। वही जो वैकुण्ठ में भगवान की दिव्यशक्ति है



Gunjan Sharma-Saini के साथ Amit Saini






We have two new cute additions....Welcome to the family Mitthu & Nibble!

Gunjan Sharma-Saini की फ़ोटो.


म्हारे घर आयो टुइयाँ (ढेलहरी तोता )और हैम्स्टर (ये देखने में चूहों जैसे लेकिन मोटे और बिना पूंछ के नन्ने से पालतू जंतु होतें हैं ये बन्दर की तरह मुंह के पार्श्वों में भोजन जमा करके रखते हैं।

दोनों को पेट्स स्टोर से पेट्स कॅरिअर में लाया गया था। भैया ये पेट कॅरियर और कुछ नहीं एक गत्ते  का सुराख्नुमा डिब्बा था। दोनों अलग अलग डिब्बों में थे।

घर लाके इन्हें इनके पिंजरों में रखा गया। पिंजरों को बाकायदा पहले से ही सेट करके रख लिया जाता है ताकि पेट अधिक देर तक पेट कॅरियर में बंद न रहे।

पेट स्टोर पर ये एक बड़े इन्क्लोजर में थे जिसमें इनके और भी संगी साथी थे।

इन सम्बन्धियों से इन्हें वक्त ने अलग कर दिया था।

मैं सोचने लगा पेट स्टोर से हमारे घर तक इनके तीन घर बदल हो गए। बड़े हवादार वातानुकूलित बाड़े से पेट केरिअयर में और फिर उससे पिंजरे में। सब कुछ नया। और बिछोड़ा ,उस विरह व्यथा की कौन कहे।

जीव की भी तो यही नियति है और ये दोनों पैरकीट और हैम्स्टर भी तो चौरासी लाख योनियों में ही आते हैं। पिंजरा पिंजरा है फिर चाहे सोने का हो बोले तो मृत्यु लोक हो या फिर स्वर्ग ही दोनों जगह जीव माया बद्ध  रहता है। स्वर्ग में पूर्व जन्म के पुण्य चुकने के बाद फिर मृत्यु लोक में लौटना पड़ता है और मृत्यु लोक की तो हम सब जानते ही हैं। आज ही ब्रह्मसंहिता का एक श्लोक भावार्थ सहित पढ़ा जो नीचे दिया गया है जो जीव के इसी बंधन की सनातन कथा कहता है। 


फिर दोहरा दें :नियति हमारी भी यही है बस पिंजरा बड़ा है। आप चाहें तो इसे दुर्ग कह सकते हैं क्योंकि यह पिंजरा जिसमें हम कैद हैं दुर्गा का है। वही जो वैकुण्ठ में भगवान की दिव्यशक्ति है और उनकी सनातन सेवा में रहती है उसी का प्रतिबिम्ब स्वरूप भगवान की मायाशक्ति दुर्गा है मृत्युलोक के जीवों के लिए। हम सब जीव भगवान की जीव विशिष्ठ शक्ति जिसे 'तटस्था शक्ति 'भी कहा गया है मार्जिनल एनर्जी भी, उसी के अंश हैं। हम भी भगवान की तरह सनातन हैं
भगवान हमसे कोई सीनियर नहीं हैं। हम दिव्य भी हैं लेकिन अणु स्वरूप हैं एक परमाणु वत है बड़ी सीमित है हमारी दिव्यता। भगवान सर्वज्ञ है हम अल्पज्ञ। भगवान के पास दिव्यचक्षु हैं हमारी आँख में मोतिया है। दुर्गा भगवान के वैकुण्ठ की बाहरी सीमा की चौकीदार है ,भगवान की स्थाई दासी है हमारी मालकिन है.

सृष्टिस्थितिप्रलयसाधनशक्तिरेका ,छायेव यस्य भुवनानि बिभर्ति दुर्गा । 

इच्छानुरूपम अपि यस्य च चेष्टते सा ,गोविन्दम आदि- पुरूषं तम अहम 

भजामि ॥ 

भगवान की बहिरंगा शक्ति माया भगवान की ही ज्ञानशक्ति की प्रतिच्छाया सी है इसी को दुर्गा रूप में सब पूजते हैं जो इस संसार की रचता पालक और संहारक है। मैं आदिपरमात्मा गोविन्द की प्रशंशा करता हूँ जिनकी मर्जी के अनुसार ही दुर्गा कार्य करती है।   

भावार्थ :यहां ब्रह्मा द्वारा देवीधाम की अधिष्ठाता  देव का वर्णन है। जिस ब्रह्म लोक  में ब्रह्मा अवस्थित हैं वहां से वह गोलोक के स्वामी की स्तुति कर रहें हैं। उसी लोक को देवी धाम कहा गया है। जिसमें १४ स्तर (लेवल ,लोक )हैं। दुर्गा उसी देवीधाम की अधिष्ठात्री देव हैं। इनकी दस भुजाएं हैं जो दस प्रकार के सकाम कर्मों का प्रतिनिधित्व  करतीं हैं।दुर्गा शेर की सवारी करतीं हैं जो उनके शौर्य का प्रतीक है। महिषासुर का मानमर्दन करतीं हैं यहां वह दुर्गुण नाशिनी हैं। उनके दो पुत्र हैं। कार्तिकेय और गणेश। कार्तिकेय सौंदर्य और गणेश सफलता के प्रतिनिधि हैं। 

दुर्गा का आसन लक्ष्मी और सरस्वती के मध्य  में है,  जो सांसारिक वैभव और दुनियावी ज्ञान का प्रतिनिधिक  है।२४ शश्त्रों से लैस हैं दुर्गा। जो विभिन्न पापकर्मों को दर्शाते  हैं। उन्होंने सर्प को पकड़ा हुआ है जो  विनाशक काल के सौंदर्य का द्योतक है। दुर्गा दुर्ग (संसार रुपी दुर्ग )की स्वामिनी हैं।इसलिए तो दुर्गा हैं। दुर्ग से दुर्गा।दुर्ग का मतलब सांसारिक कैदखाना जीवों का। 

यह जीव जो स्वयं कृष्ण गोविंदा की जीव शक्ति (तटस्था शक्ति )का अंश है उसी से पैदा हुआ है उसे ही भूल गया है इसीलिए इस दुर्ग में कैद है। कर्म का पहिया ही यहां दुःख भोग (सजा )का कारण बना हुआ है। (जिसे हम सुख समझते हैं वह भी दुःख है क्योंकि सुख भोगने से हमारा पुण्य चुकता है जिसके चुकने के बाद व्यक्ति फिर इसी नरक में आ गिरता है इसी कैदखाने से कर्मबंधन से आबद्ध हो जाता है।स्वर्ग का अमतलब बस जेल सोने की है जंजीर सोने की है। है दोनों जगह जंजीर कर्मबंधन  की )  . 

 सजा भोग रहे इन सांसारिक जीवों को पाप मुक्त करने का काम और शक्ति कृष्ण  ने दुर्गा को अंतरित की हुई है।वह इस कार्य में गोविंदा की मर्जी से नित्य संलग्न हैं। जब किसी संत के सानिध्य से जीवों को  अपनी संविधानिक स्थिति (गोविन्द की सेवा )का बोध होता है और उन्हें अपना कर्तव्य कर्म प्रभु के चरणों की सेवा याद आता है तब दुर्गा ही गोविन्द से आदेश पाकर उनका उद्धार करतीं हैं। इस कैदखाने से आज़ाद करती हैं।

इसलिए जीव मात्र के लिए यही उचित है कल्याणकारी है वह कृष्ण पाद  सेवा करके दुर्गा का प्रसादन करे। दुर्गा जी को परितुष्ट करे। भगवान के चरणकमलों की निष्काम  सेवा से ही दुर्गा जी प्रसन्न होतीं हैं।सकाम सेवाकर्म का कोई स्थाई लाभ नहीं है जीव जन्म मृत्यु के सनातन चक्र ( कैदखाने)  में फंसा रहता है।

धन संपत्ति ,सांसारिक वैभव की प्राप्ति ,हारी -बीमारी  से निवृत्ति ,पत्नी, पुत्र आदि की प्राप्ति दुर्गा जी की कृपा नहीं है। यह कृपा आपको भ्रमित  करने वाली है आपकी सकाम सेवा साधना का फल है। यही तो माया है और उसका कुनबा जो हमें  भ्रांत किए रहता है । 

यही महा -माया दुर्गा के दस रूप हैं। दस महा विद्याएं हैं। जीव कृष्ण का आध्यात्मिक परमाण्विक अंश  है।

ईश्वर अंश जीव अविनाशी

 जीव और ब्रह्म दोनों दिव्य हैं कोई सीनियर नहीं है दोनों सनातन हैं लेकिन परमात्मा सर्वज्ञ है जीव अल्पज्ञ। परमात्मा रचता है जीव उसकी रचना।  जब जीव अपनी सांविधानिक स्थिति से च्युत होकर कृष्ण पाद  सेवा भूल जाता है तब भगवान की मायाशक्ति (दुर्गा ) द्वारा वह इसी कैदखाने में डाल दिया जाता है। 

पंचभूतों का बना एक स्थूल शरीर और इन तत्वों के शब्द ,स्पर्श, रूप, रस गंध पांच गुणों के अलावा उसे एक सूक्ष्म शरीर भी मिल जाता है। पांच कर्मेन्द्रिय और पांच ज्ञानेन्द्रियाँ तथा ग्यारहवां एक मन भी उसे मिल जाता है। 

(इस प्राप्ति का कारण होता है उसका कारण शरीर जो जन्म जन्मांतरों  के कर्मफल भोग लिए रहता  है उसी का एक अंश प्रारब्ध कर्मफल , जीव जन्मश : लेकर माँ एके गर्भ में प्रवेश पाता  है। ). 

इसी मायावी जलावर्त में जीव सुख दुःख स्वर्ग नरक की प्राप्ति करता है। मन बुद्धि चित्त और अहंकार से संयुक्त उसका सूक्ष्म शरीर उसका पिंड नहीं छोड़ता जब तक कि उसे भगवत कृपा प्राप्त न हो जाए। निष्काम भक्ति इसका सरल उपाय है। 

ये सब काम गोविंदा की मर्जी से दुर्गा जी ही करतीं हैं। यही दुर्गा कृष्ण के वैकुण्ठ लोक में उनकी सनातन सेविका हैं। इस संसार की दुर्गा उनकी प्रतिच्छाया मात्र हैं। वह दुर्गा तो  दिव्या हैं भगवान की प्रत्येक चीज़ दिव्य है। 

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