गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

चन्द माहिया :क़िस्त 24

माहिया :  क़िस्त 24

:1:

ये इश्क़,ये कूच-ए-दिल
दिखने में आसाँ
जीना ही बहुत मुश्किल

:2:

दिल क्या चाहे जानो
मैं न बुरा मानू
तुम भी न बुरा मानो

  :3:
सच कितना हसीं हो तुम
चाँद किधर देखूं
ख़ुद माहजबीं हो तुम

:4:
जाड़े की धूप सी तुम
मखमली छुवन सी
लगती हो रूपसी तुम

:5:
फिर लौट गया बादल
बिन बरसे घर से
भींगा न मिरा आंचल

-आनन्द पाठक
09413395592

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें