शनिवार, 2 जनवरी 2016

एक ग़ज़ल : अगर आप जीवन में...




अगर आप जीवन  में होते न दाखिल
कहाँ ज़िन्दगी थी ,किधर था मैं गाफ़िल

न वो आश्ना है  ,न हम आश्ना  है
मगर एक रिश्ता अज़ल से है हासिल

नुमाइश नहीं है ,अक़ीदत है दिल की
मुहब्बत है ने’मत .इबादत  में शामिल

हज़ारों तरीक़ों से वो  आजमाता
खुदा जाने कितने अभी है मराहिल

मसीहा न कोई ,न कोई मुदावा 
कहाँ ले के जाऊँ ये टूटा हुआ दिल

जो पूछा कि होतीं क्या उल्फ़त की रस्में
दिया रख गया वो हवा के मुक़ाबिल

इसी फ़िक़्र में उम्र गुज़री है "आनन’
ये दरिया,ये कश्ती ,ये तूफ़ां ,वो साहिल

-आनन्द.पाठक-
09413395592

शब्दार्थ
मराहिल  =पड़ाव /ठहराव [ ब0ब0 - मरहला]
आशना    =परिचित /जान-पहचान
अज़ल  से  = अनादि काल से
अक़ीदत  = दृढ़ विश्वास
मुदावा     =इलाज

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें