शनिवार, 26 मार्च 2016

स्मृति शेष..

एक गीत : मधुगान माँगता हूँ....

मधुगान माँगता हूँ.  मधुगान माँगता हूँ....

स्वर में भरी सजलता ,बढ़ती हृदय विकलता
दृग के उभय तटों में तम सिन्धु है लहरता
प्राची की मैं प्रभा से  जलयान  माँगता  हूँ
मधुगान माँगता हूँ....

दो पात हिल न पाये ,दो पुष्प खिल न पाये
उस एक ही मलय से दो प्राण मिल न पाये
फूलों का खिलखिलाता अरमान माँगता हूँ
मधुगान माँगता हूँ....

इक आस जल रही है ,इक प्यास पल रही है
लेकर व्यथा का बन्धन यह साँस चल रही है
अभिशाप पा चुका हूँ , वरदान माँगता हूँ
मधुगान माँगता हूँ....

उठते हैं वेदना घन ,ढलते हैं अश्रु के कण
मिटते हैं आज मेरे उस पंथ के मधुर क्षण
मिटते हुए क्षणों की पहचान  माँगता  हूँ
मधुगान माँगता हूँ....

अब पाँव थक चुके हैं , दूरस्थ गाँव  मेरा
होगा किधर कहाँ पर अनजान ठाँव मेरा
मुश्किल हुई हैं राहें ,आसान माँगता हूँ
मधुगान माँगता हूँ....

कोलाहलों का अब मैं अवसान माँगता हूँ
जन संकुलों से हट कर ,सुनसान माँगता हूँ
मधु कण्ठ कोकिला से स्वर दान माँगता हूँ
मधुगान माँगता हूँ....मधुगान माँगता हूँ.........

(स्व0) रमेश चन्द्र पाठक

["प्रयास" से -काव्य संग्रह {अप्रकाशित}


प्रस्तुत कर्ता
-आनन्द.पाठक-
09413395592

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें