गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

चन्द माहिया : क़िस्त 32

:1:

माना कि तमाशा है
कार-ए-जहाँ यूँ सब
फिर भी इक आशा है

:2:
दरपन तो दरपन है
झूट नहीं बोले
क्या बोल रहा मन है ?

:3:
छाई जो घटाएं हों
दिल क्यूँ ना बहके
सन्दल सी हवाएं हों

:4:
जितना देखा है फ़लक
उतना ही होगा
बातों में सच की झलक

:5:
 कैसा ये नशा ,किसका ?
कब देखा उस को ?
एहसास है बस जिसका

-आनन्द पाठक
09413395592

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