रविवार, 3 अप्रैल 2016

लोग - हाल में घटित हिंसात्मक घटनाओं और प्रदर्शनों पर

समय बहुत विकट है देखो, आवेशों में बहते लोग
कहीं लोग हैं उपद्रवियों से, कहीं सहमे डरते लोग

लोकतंत्र का तंत्र जो बिगड़े, लोक भी धीरज ना धरे
असहले हाथों में लेकर, जाने क्या-क्या करते लोग

रहनुमा है कौन यहां पर, तथ्यों का कुछ पता नहीं
शोर मचाते, आग लगाते, नींद में देखो चलते लोग

बहुत हुई अब नासमझी, कब हिंसा ने क्या पाया है
देखे हमने घायल होते, कभी देखे हमने मरते लोग

प्रेम, क्षमा, संवाद से देखो, रस्ते कई खुल जाते हैं
तब देश स्वर्ग बन जाता है, खुशहाली में रहते लोग

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