शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

आदमी, आदमी को ही लूटता है

आदमी आदमी को ही लूटता है
अपना पराया सभी को लूटता है
क्‍या खोया क्‍या पाया सोचता है
दुख भीतर ही तो कचोटता है
जीवन में खो जाते है जो जो
उन्‍ही को बार बार खोजता है
हार जीत का प्रश्‍न है गौण अब
जीवन जीवन को ही घसीटता है
दे दे विराम कह दे अलविदा
यही विचार अब जहर घोलता है
अजब है तुम्हारी ये बड़ी बड़ी बातें
विक्षिप्त कभी झूठ नहीं बोलता है

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