मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

Laxmirangam: अनुवाद

Laxmirangam: अनुवाद: अनुवाद अनुवाद का शाब्दिक अर्थ – किसी कही हुई बात को (उसी तरह) पुनः कहा जाना – को अनुवाद माना जा सकता है. “ उसी तरह ” - के बहुत मतलब ...

रविवार, 23 अक्टूबर 2016

एक लघुव्यथा : अन्तरात्मा की पुकार......[व्यंग्य]

एक लघु व्यथा: अन्तरात्मा की पुकार ...[व्यंग्य]

--’अलाना सिंह’ अपनी पार्टी छोड़   ’ ’फ़लाना पार्टी में शामिल हो गए।

      बीती रात जब वो सो रहे थे तो उनकी अन्तरात्मा एकाएक जाग गई । ऐसी ही  अन्तरात्मा एक बार बाबू जगजीवन राम जी की भी जगी थी कि कांग्रेस छोड़ दिया था और तब से  ’आया राम ,गया राम, चल पड़ा।तत्पश्चात कई लोगों की अन्तरात्मा जगने लगीऔर वोअपना दल छोड़ सामने वाले दल में जाने लगे इस उम्मीद से कि वहाँ उनकी अन्तरात्मा को कोई पद मिल जाये...कुर्सी मिल जाए  तो आत्मा को   शान्ति मिल जाए। एक मित्र ने पूछा -जब कोई पुरुष दल-बदल करता है तो ’आया राम गया राम’ कहते हैं परन्तु जब एक महिला नेत्री दल बदल करती है तो उसे क्या कहते हैं ? मैने कहा "--आई रीता,गई गीता । रीता माने ’खाली’, हाथ कुछ भी नहीं ।-कई वर्षों तक पार्टी की अथक सेवा करने के बाद भी कोई लाभकारी पद न मिले ...मुख्यमंत्री की कुर्सी न मिले ...किसी संस्था का अध्यक्ष पद न मिले तो ’आत्मा’ बेचैन हो जाती है  और जग जाती है ।  उनकी  आधी रात को जग गई । कोसने लगी ’-हे मूढ़ पुरुष !  ।  एक ही पार्टी की विचारधारा वर्षों से धारण करते करते तेरे वस्त्र मैले हो गए ..जीर्ण-शीर्ण हो गए -यत्र तत्र से फट फटा गए हैं जिस समाजवाद को तू सीने से चिपकाए  फिरता है वो तो छ्द्म समाजवाद है .तेरा समाजवाद तेरे घर से उठ कर तेरे भाई ,तेरे पुत्र ,तेरी पुत्र-वधू ,तेरे भतीजे ,तेरे भांजे तेर साले से घूम फिर कर तेरे नाती पोतो तक  आ जाता है ।क्या तेरा ’सेक्यूलिरजम’ झूठा नहीं है? छद्म नहीं है ? रोज़ा में इफ़्तार पार्टी  देता है , अयोध्या में ’हनुमान गढ़ी जाता है.....  गुरुद्वारा में सरोपा ग्रहण करता है .... वोट बैंक में सेंध लगाता है ...किसलिए ..कुर्सी के लिए न .।क्या ..तेरा सर्वधर्म समभाव ..... का नारा कुर्सी के लिए नही है ? वोट के लिए नहीं होता  ....।वोट के लिए ..जालीदार टोपी लगा लेता है ...तिलक भी लगा लेता है...तराजू भी  तौल लेता है ...तलवार वालों को जूते भी मार देता है । क्या  वर्षों से तू अपने आप को नहीं छल रहा है ?  उठ ! छोड़  यह पार्टी ..तेरी दाल अब तक नहीं गली तो आगे भी नहीं गलेगी। हाशिये पर आ गया है तू ।  पार्टी का झंडा अपनी साईकिल पर लगाए कब तक चलेगा ।कब तक पार्टी अधिवेशन में जाजिम बिछायेगा...दरी उठायेगा ..पानी पिलायेगा ,,,खाली पेट सेवा करता रहेगा ।जब  फल मिलने का समय आता है तो  हाइ-कमान ’बाहर’ से भेज देता है किसी ग़ैर को पार्टी की सेवा करने का और तू ठगा ठ्गा सा रह जाता है ।उतिष्ठ मूढ़ ! उतिष्ठ ! छोड़  यह पार्टी ...यहीं सड़ेगा क्या....

अब उनकी अन्तरात्मा जग चुकी हैअब सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा  है । आत्मा निर्मल हो चुकी है । पुरानी पार्टी में छिद्र ही छिद्र था । कितनी मैली-कुचैली थी पुरानी पार्टी -कितनी दुर्गन्ध भर गई है वहां । कैसे रहा इतने दिन तक इस सड़न्ध में  कि जानवर भी न रहे ।कितनी संवेदनहीन थे वे लोग ...मेरे खून को खून न समझ सके....मेरे पसीने को पसीना न समझा । हाई कमान से मिलने का समय माँगो तो समय नहीं मिलता राजकुमार जी से मिलने का  तो सवाल ही नहीं। घुटन थी उधर .......अपने नेतॄत्व तो करते नहीं ...हमें करने नहीं देते ....बस जाजिम बिछाते रहो,,,दरी उठाते रहो...पानी पिलाते रहो...

 अटकले लगती है ।खबर चलती है ,नाटक चलता है ।नहीं नहीं... मैं  नहीं जा रहा हूँ ...मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ ....सब मीडिया की साजिश है,,,,मैं तो पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं ....पार्टी जो दायित्व सौपेंगी निष्ठा के साथ निभाऊँगा...मुझे मुख्यमंत्री बनने की  कोई इच्छा नहीं ...मैं तो पार्टी की सेवा के लिए पैदा हुआ हूँ ..वफ़ादार सेवक हूँ ....पार्टी की ऐसे ही सेवा करते करते मर जाऊँगा ...मेरी हर एक साँस देश के लिए है... पार्टी के लिए है...गरीबों के लिए है ..दलितों के लिए हैं..मज़दूरों के लिए है ...किसानों के लिए  ......मै तो बस देश हित के लिए साँस धारण किए हुए हूं।

उनकी साँस तो जवाब नहीं देती हैं ,अनुशासन जवाब दे जाता है और एक दिन सुबह उठ कर किसी अधो वस्त्र की तरह विचारधारा बदल देते है  !’वासांसि जीर्णानि यथा विहाय ,नवानि गृहणाति नरोपराणि.....
और फिर अचानक , अलाना पार्टी का ’हाथ’ छोड ’फ़लाना’ पार्टी का ’फूल’ थाम लेते हैं  ......रात-ओ-रात विचारधारा बदल लेते हैं ..सोच बदल लेते है ... संस्कार बदल लेते है... स्वयं हित के लिए नहीं ..परिवार हित के लिए  ...कुर्सी के लिए ...सत्ता सुख के लिए.
चुनाव काल में ऐसे ’आया राम गया राम ’को  लालू जी ’मौसम वैज्ञानिक’ की संज्ञा देते है । वह ’राम’ समझदार है जो चुनाव काल में मौसम का ,हवा का रुख देख कर पाला बदल लेता  है।
कुर्सी में गुन बहुत है ,सदा राखियो ध्यान
उड़ो हवा के संग सदा ,यह मौसम विज्ञान
ये मौसम विज्ञान , ’विचार’ की ऐसी तैसी
अपने ’राम’ चले जिधर मिल जाए ’कुर्सी’

जनता को छकने-छकाने के बाद ,अन्तत: घोषणा हो गई -अलाना सिंह’ अपनी पार्टी छोड़ ’फ़लाना’ पार्टी में शामिल हो गए।
 मंच सजाए जाने लगे ,स्वागत की तैयारियां की जाने लगी ...माला फूल मँगाए जाने लगे... इत्र-फुलेल छिड़के जाने लगे ,...केवड़ा जल का छिड़काव जारी है  .हाथ में ’कमल’ का फूल थमाना है .....’अलाना सिंह’ कह चुके हैं कि पुरानी पार्टी में काफी दुर्गन्ध है ।अगर   पुरानी पार्टी से वह कोई ’दुर्गन्ध’ साथ लाते हैं  तो नई पार्टी में न फ़ैले। ।पुरानी पार्टी को ज़ोरदार झटका दिया है तो स्वागत भी ज़ोरदार होना चाहिए।
प्रेस कान्फ़्रेन्स में ’ए बिग कैच मछली " प्रस्तुत किया गया --देखो प्रेस वालों ... अन्य पार्टी वालों -क्या तीर मारा है मैने

पत्रकार -  अलाना सिंह जी ! आप ने नई पार्टी क्यूँ ’ज्वाईन’ की। क्या देखा  इस में  ऐसा कि रात-ओ-रात ...?
अलाना सिंह- ’  देखो भई ! मेरे रग रग में देश भक्ति कूट कूट कर भरी है। हम खानदानी ’देशभक्त हैं ...जिधर देश भक्ति उधर मैं....देश पहले है ,पार्टी बाद में ,विचारधारा उसके बाद में और मैं तो सबसे बाद में । मुझ से किसान भाईयों का दर्द देखा नहीं जा रहा था -जिन ग़रीब किसान भाईयों के हाथ में ’ सिंहासन ’ सौपना था,  आप ने ’’खाट’  सौंप दिया और वह भी ’झिलंगी’ --यह किसान भाईयों का ही नहीं बल्कि ’खाट" का भी अपमान है ।मुझ से यह अपमान देखा नहीं जा सका सो इधर चला आया।मेरे देश के जवान सीमा पर अपने प्राण न्योछावर कर रहे हैं... हमारी  बहने विधवा हो रही है  ..कलाईयां सूनी हो रही है  ...और कोई कहे कि ’खून’ की दलाली है ..मैं आहत हो गया...सो इधर चला आया....
पत्रकार - मगर यह बयान तो महीना भर पहले आया था...तब तो आप ने पार्टी नहीं छोड़ी
अलाना सिंह -- तो क्या हुआ ? जब समझ में आया तब छोड़ी ,..
पत्रकार - मगर आप के पुराने साथी तो कह रहे हैं कि आप ’दगाबाज’ है?
-ठीक ही कह रहे होंगे।दगाबाजी -का मतलब  उनसे ज़्यादा और कौन समझता होगा । जब वो साईकिल के पीछे पीछे दौड़ रहे थे और पीछे कैरियर पर बैठने की जगह नहीं मिली तो ’हाथ’ पर आकर बैठ गए तब दगाबाजी नहीं दिखी
लोग कहते हैं कि मैं हाशिए पर आ गया था । भईए ! पार्टी का सच्चा सिपाही तो हाशिए पर ही रहता है ....पार्टी के मुख्य में तो जुगाड़ी  ...दरबारी...चमचे ..चरणस्पर्शी ...दण्डवती ..रहते है --उन्होने एक दीर्घ उच्छवास छोड़ते हुए अपना दर्द उडेला ।

तमाम उम्र  कटी पार्टी की सेवा करते 
आखिरी वक़्त में क्या खाक ’जुगाड़ी’ बनते 

-अलाना भईया की जय ...फलाना पार्टी की जय ...जिन्दाबाद ..जिन्दाबाद ...भईया जी संघर्ष करो....हम तुम्हारे साथ हैं--वन्दे मातरम -समर्थको ने नारा लगाया

अलाना सिंह  मुस्करा दिए--डूबते को तिनके का सहा्रा न सही ....तो ’कमल’ का डंठल ही सही।

अस्तु

-आनन्द.पाठक-
  

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

एक लघु व्यथा : खाट...खटमल...खून..[व्यंग्य]

एक लघु व्यथा  : खाट...खटमल....खून...[व्यंग्य]

[नोट -आप ने ’बेताल-पच्चीसी’ की कहानियाँ ज़रूर पढ़ी होंगी जिसमें राजा विक्रमादित्य जंगल में , बेताल को डाल से उतार कर,और कंधे पर लाद कर  चलते हैं और बेताल रास्ते भर एक कहानी सुनाते रहता है ।बेताल  शर्त रखता है कि अगर राजा  ने रास्ते कुछ बोला तो वह  उड़ कर  डाल पर जा कर लटक जायेगा.....
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 ......................राजा विक्रमादित्य  ,बेताल को डाल से उतार कर चलने लगे ।
-बेताल ने कहा-हे विक्रम !- रास्ता लम्बा है तू थक जायेगा .चलो  मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ..
राजन चुप रहे
’तो सुन ’
राजन चुप रहे
प्राचीन काल में एक राजा थे  जिसकी कई पीढ़ियों ने राज्य पर शासन किया } अभी राजकुमार का राज्याभिषेक भी नहीं हुआ था  कि राजा के हाथ से  सत्ता  निकल गई ।और वह सत्ता विहीन हो गए। ।राजा के पुराने वफ़ादार और दरबारी चाहते थे कि किसी प्रकार राजकुमार जी का राज्याभिषेक हो जाए ...सत्ता सम्भाल लें तो हम सब भी वैतरणी पार कर लें। वे  हर प्रकार से उन्हें आगे ठेलने की कोशिश कर रहे थे कि राजकुमार जी आगे बढ़े गद्दीनशीन हो जायें परन्तु  राज कुमार जी ऐसे कि आगे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं।वह कोशिश तो बहुत कर रहे थे ।समर्थकों ने नारा भी लगाया कि भईया जी आप आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ है .जब तक सूरज चाँद रहेगा ,भईया जी का नाम रहेगा ,सबका साथ ..भईया जी का हाथ .,.परन्तु  भईया जी वहीं के वहीं रह जाते ...जब लोग ज़्यादे ज़ोर लगा कर ठेलते थे तो राजकुमार जी 2-3 महीने के लिए ’गुप्तवास " में चले जाते थे फिर उनके समर्थक उन्हें खोजते फिरते थे । किसी ने अगर भईया जी से आगे निकल कर नेतॄत्व करना चाहा तो कुछ दरबारी लोग  उसे पीछे ठकेल देते थे  राजकुमार जी के रहते तुम्हारी ये मजाल .....जिसने कोशिश की उसको पीछे ठकेल दिया .गया ....भईया जी के पीछे ..।और इस प्रकार राजकुमार  जी आगे -आगे चलते रहे...बस चलते ही रहे ...
.
कुछ सलाहकारों ने सलाह दिया कि राजकुमार जी को अगर फ़र्श से अर्श तक उठाना है ..सिंहासन पर बैठाना है तो पहले "खाट’ पर बैठाना होगा...

-’विक्रम ! खाट तो समझता है न ।खाट को ’खटिया’ चारपाई ,,शैय्या भी कहते हैं हैं । ’फ़ेसबुक’..वाली पीढ़ी  संभवत: ’खटिया ’नाम से परिचित न हो ,मगर -’सरकाय लो खटिया जाड़ा लगे’- से ज़रूर परिचित होती है ।जाड़े में खटिया की उपयोगिता ज़रूर समझती  है ,’सरकाने के काम आती है --’सरकाने’ की सुविधा सिर्फ़ खटिया में ही है --’किंग साइज़’.और .क्वीन साइज़ बेड में   नहीं । क्वीन साइज़ बेड को ’सरकाने’ की सुविधा नहीं होती है- खुद ’सरकाने”की सुविधा होती है
खाट का हमारे जीवन से क्या संबन्ध है तू तो जानता ही होगा। जन्म से लेकर कर मॄत्यु तक . ..जीवन के साथ भी..जीवन के बाद भी...बिल्कुल जीवन बीमा निगम की तरह ..जीवन के बाद . दान करते है  खाट  --किसी  महापात्र को।खाप पंचायत के ताऊ जी इसी खटिया  पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते है ..... हुकुम सुनाते है और समाज की इज्जत बचाते हैं...।
खाट है तो खटमल भी होगा । खटमल न देखा हो तो देवानन्द की  फ़िल्म ,’छुपा रुस्तम’  देख लेना -"धीरे से जाना ’खटियन’ में ..ओ खटमल ...धीरे से जाना खटियन में । जिसमे देवानन्द जी खटमल को उकसा  रहे हैं जा बेटा जा खटियन में और हीरोइन का खून चूस ..मेरी तो वो सुनती नहीं है , तू ही जा सुना ।
अब खटमल है तो खून चूसेगा ही ...धीरे धीरे चूसे , जोर से चूसे...बार बार चूसे.   या 5-साल में एक बार चूसे . छुप छुप के चूसे या सरेआम चूसे ...मगर चूसेगा  ज़रूर खून। ज़रूरी नहीं कि ’गाँधी-टोपी’ लगा कर ही चूसे  । राजनीति में भी बहुत खटमल पैदा हो गए हैं और हमारी खाटो में घुस गए हैं ..चैन से सोने भी नहीं देते

सलाहकारों ने सलाह दिया कि राजकुमार जी को अगर सिंहासन पर बैठना है तो पहले "खाट’ पर बैठना होगा...पी0के0 साहब इस रहस्य को जानते हैं । सलाह दे दिया ’खाट पंचायत: करो..खाट पर चर्चा करो  ..यही ’खाट’- विरोधी पार्टी की नाक काटेगी। अब तो खाट पर ही भरोसा रह गया । जनता का क्या है ...खटिया बिछा दी तो बिछा दी..नहीं तो  खड़ी कर दी  ....दिल्ली  में एक पार्टी के लिए बिछा दिया तो बिहार में दूसरी पार्टी की   खड़ी कर दी। जनता का  क्या है --’किसी को तख्त देती है ,किसी को ताज देत्ती है  ..बहुत खुश हो गई जिस पर उसी को राज देती है "वरना खाज देती है । इसी से चुनाव वैतरणी पार हो जाये शायद ,अब तो इसी खाट का  भरोसा है ,जनता पर  भरोसा नहीं  ।

घोषणा हो गई ’खाट’  पर चर्चा  की ।..जगह जगह खाट बिछाए जाने लगे ...जहां जहाँ  चुनाव है वहीं खाट  बिछाना है ..फ़ालतू में खाट तुड़वाने का नहीं। खाट का टेन्डर होने लगा ..सप्लाई ली जाने लगी..सप्लायर्स गदगद हो गए ...खाट पहुँचाए जाने लगे विधान सभा क्षेत्रों  में.... जनता आयेगी ..... खाट पर बैठेगी--हम. सपने बेचेंगे....मुफ़्त में पानी ...मुफ़्त में बिजली ... किसानो का कर्ज माफ़ करेंगे.... हम जानते है कि जनता ’मुफ़्त खोर’ हो गई है ..यही भुनाना है...जनता ग्राहक है  और हम सौदागर । ग्राहक देवता होता है ...देवता को आसन देना है  ,,,सो  खाट का आसन दे दिया ..आप आओ ...हमारे  वादे सुनो ...आराम से.खाट पर बैठ कर ...आधे घंटे में हमें सुनना है आप का दर्द ...आप की समस्या ..आप के कष्ट... फिर 5-साल के लिए आप निश्चिन्त हो जायें .हम आप की सेवा करेंगे अगले 5-साल तक .  ...बस समझें  कि आप का कष्ट हमारा कष्ट ..हमारा ’हाथ’-आप के साथ...न हो तो दिल्ली वालों से पूछ लें,,,,हो सकता है कि आप को मुफ़्त में कोई भाई साहब साइकिल दे.दे..मोबाईल फ़ोन दे,दे,,,लैप टाप दे दे .कोई बहन जी हाथी भी दे दें ... कुछ टट्पूजिया पार्टी मुफ़्त में दवा दारू की बोतल  भी दे.दें......विरोधी कम्पनी के झाँसे में न आइएगा . नकली माल बेचते है सब के सब  ,नक्कालों से सावधान ... नकली माल से बचें.....और आगामी चुनाव में ’हमारा ’ खयाल’ रखें ...

खाट पंचायत पूरी हुई । नेता जी उड़ कर दूसरी जगह खाट बिछाने चले गए } जनता मुँह देखती रह गई फिर वही खाट उठा कर घर ले गई ।कुछ लोग तो खाट तोड़ कर पाटी पाया भी साथ ले गए।
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 तो हे विक्रम ! अब तू मेरे सवाल का जवाब दे कि जनता  खाट लूट कर क्यों ले गई और कुछ लोग खाट तोड़ तोड़ कर क्यों ले गए । बता ..तू तो बड़ा ज्ञानी है.. न्याय करता है... न्यायी बने फिरता है ,,,
राजा विक्रमादित्य चुप रहे
;बता कि जनता  ने खाट क्यों लूटी ???? ,...जवाब दे नहीं तो तेरे सर के टुकड़े टुकड़े कर दूँगा....
राजन सहम गए . बेताल का क्या भरोसा ...कही सचमुच ही न सर के टुकड़े कर दे ।

 अत: बोल उठे-"हे बेताल ! तो सुन ! जनता भोली थी मगर  हुशियार थी ..हर बार "पितृ-पक्ष में कौआ-पूजन"..देखती है ...राजकुमार की बातों का भरोसा नहीं  .पता नहीं राज्याभिषेक होगा भी कि नहीं ..अत: नौ नगद ,न तेरह उधार ,,,जो हाथ लगा वहीं नगद...सो जनता ने खाट लूट ली और घर चलते बनी  .एक बात और ,  5-साल ये खटमल धीरे धीरे  खटियन में घुस जायेंगे और  धीरे धीरे खून चूसेंगे।चैन से सोने भी नहीं देंगे  अत: ...’न रहेगी खाट ,न रहेगा खटमल ,न चूसेंगे  खून" -न रहेगा बाँस ,न बाजेगी बँसुरी ....

-तो फिर कुछ लोगो ने खाट क्यों तोड़ा ? -बेताल ने पूछा
-हे बेताल ! कुछ गरीब किसानों के घरों  में कई दिनों  से ’चूल्हा नहीं जला था ,सो उसे लकड़ी की ज़रूरत थी कि पेट की आग बुझाने के लिए ..चूल्हा जला सकें । भाषण से ...वादों से...नारों से .. पेट की आग नहीं बुझती ,,...चूल्हे का जलते रहना ज़रूरी है अत:  उसने खाट को तोड़ कर लकड़ी की व्यवस्था....
-हे विक्रम !तू तो बड़ा ज्ञानी है ,परन्तु  तूने एक ग़लती कर दी.... शर्त तोड़ दी,,,तू बोल उठा...और .यह ले... मैं चला उड़ कर..
..... और एक बार फिर बैताल डाल पर जा कर उल्टा लटक गया



-आनन्द.पाठक-
08800927181

बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

राजा

"मम्मा, आज की दाल बहुत गाढ़ी है , मगर टेस्टी है " अनुज ने कहा।
ठीक है , ठीक है ।  कितनी बाते करते हो खाते  वक़्त " इरा ने प्यार से झिड़क दिया  अनुज को।
इरा खा चुकी थी, रागेश और अनुज अभी ही  खा रहे थे।
रात सवा दस बजे थे उस वक़्त।
 तनीषा और अनुज के स्कूल में उन दिनों दशहरे की छुटिया चल रही थी, इसलिए खाने पर देर हो ही जाती थी।

अचानक रागेश  का फ़ोन बज उठा।  रागेश  ने फ़ोन उठाया।
- ओह  ......  ! अच्छा   .....  ,
- कैसे ??? .........
- कब ? .........
- कहाँ ?

 -अच्छा ठीक है , ढूंढ लो फिर बताना "  यह कहकर रागेश ने फ़ोन रखा और खाना खाने लगे।

 "किसका फ़ोन था ? , इरा ने पूछा।
" वरुण का !"
"क्या खो गया , क्या उनकी स्कूटी चोरी हो गयी ? " इरा  ने  एक ही सांस पूछ डाला।

वरुण, इरा का भतीजा था १९ साल का।  इरा की ननद अलका, अपने दो बेटों   के साथ इरा  के घर से थोड़ी दूर एक सोसाइटी में रहते  थे।

अलका दीदी, रागेश से एक साल बड़ी थी।  दीदी , रागेश और इरा के ससुर इस शहर में करीब १९९७ में बिहार से  आये थे और फिर यहीं बस गए थे।  दीदी  ने हालाँकि  अंतरजातीय विवाह  किया था मगर यहीं इस शहर में आकर किया था ।   ये इरा की शादी के बहुत पहले की बात है।

जब इरा और  रागेश  की शादी हुई तब तक तो ससुर जी भी नहीं रहे थे और दीदी के गोद  में वरुण था - करीब तीन साल का। वरुण बहुत जुड़ा हुआ था इरा से।

फिर तो इतने सालो में बहुत कुछ हो गया था - दीदी और जीजा जी ने घर खरीद लिया था - और जीजा जी वरुण से आठ साल छोटा अंकित  दीदी की गोद  में छोड़ कर जाने कहाँ चले गए - हमेशा के लिए। कभी लौट कर नहीं आये। आज उस बात को करीब ९ साल हो गए थे।

और छोड़ा भी तो क्या - लाखो का क़र्ज़ , घर की किश्ते न भरकर डिफाल्टर बना गए थे दीदी को !  ये कहाँ कम था - अंकित,  जो  इरा की तनीषा से एक साल बड़ा था - severely  autistic  था।  कितने नाज़ से लाई थी वो अंकित को इस दुनिया में।  बहुत  पैसा था  जीजाजी के पास, उन दिनों!  इसीलिए तो  अंकित को घर में प्यार से राजा बुलाने लगे थे सब।  करोडो का मालिक  - राजा !
Courtsey  Internet 
वक़्त ने विवश कर दिया था  - अब दीदी को भी काम करना पड़ रहा था। महज  १००००  की नौकरी।  खैर खर्च निकलने लगा।  फिर तो वरुण ने भी १२वी  के बाद पढाई छोड़ घर का खर्च संभल लिया था।  नौकरी पर लग गया था वो भी।

हालॉकि राजेश और इरा के कहने पर distance  learning  से BBA  कर रहा था।
करोडो में खेले हुए जब पाई पाई  मोहताज हो जाते हो - ऐसे कितने घर देखे थे इरा ने और ये तो खुद रागेश  की बहन का घर था।  जब बन पड़ता , हर संभव मदद करते थे इरा और रागेश।
और अभी कुछ महीनो पहले ही तो दीदी ने ऑफिस जाने के लिए स्कूटी खरीदी थी और    "वो स्कूटी चोरी हो गई! " - ये सोच के इरा का कालेज मुह को आ गया था।

रागेश  की आवाज़   उसे वर्तमान में ले आई थी।
-" नहीं !"
- "तो ??"
- 'राजा खो गया !"

" WHAT !!!!!"  इरा का मुह खुला का खुला रह गया !
- राजा खो गया ?
- कब ?
-कहाँ?
-कैसे ??
-"गोल बाजार में खो गया,"  रागेश   झल्लाते हुए कहा !

-तो पुलिस में रिपोर्ट लिखाई की नहीं ? और खोया कब ?

- " दोपहर साढ़े तीन बजे !"

- और अभी सवा दस बज रहे है !! वो लड़का कहाँ होगा ! ओह माय गॉड ! वो भूखा  प्यासा  होगा !

- और हमें अभी बताया !!  रुआंसी हो गई !
इरा को समझ नहीं आ रहा था वो गुस्सा करे या रोये !

"क्या हुआ मम्मा"  अनुज ने पूछा !
"बेटा,  राजा खो गया और सात घंटे हो गए , पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई , और तो और हमको भी नहीं बताया !, इरा बोली।

अंकित बोल नहीं सकता था।
उसे  तो अपना नाम भी बोलना नहीं आता था , दीदी या वरुण का नाम क्या ख़ाक बताता! उसमे संवेदनाये भी नहीं थी।  इमोशन्स   भी तो नहीं जैसे थे उसमे ! उसे तो शायद अहसास भी नहीं रहा होगा  की वो खो गया है !

इस सब में साढ़े दस बज चुके थे !

" रागेश,  वरुण से पूछो वो कहाँ है ?  हम जा रहे है अभी - चलो तुम अभी के अभी "

" वरुण बहुत गुस्से में है, इरा ! वो बात नहीं कर रहा ! "

-"वो साढ़े नौ बजे जब ऑफिस लौट कर आया तब अलका ने बताया की राजा ग़ुम  हो गया है !"
- "मतलब किसी को नहीं  ही पता की राजा गुम हुआ है अब तक !   और,  वरुण और देर से आता तो ?? "
-"ओह माय गॉड - दीदी पागल हो गई है  या उसे जान बुझ के छोड़ कर, खो कर आई है!!" इरा का गुस्सा  फूट पड़ा,  "  वैसे भी वो कहती रहती है की उसे किसी ऐसे बोर्डिंग  में दे आये जहाँ ऐसे बच्चे पालते है "

" चुप रहो तुम!  - पागल तुम हो गई हो ! - जब डिस्टर्ब होती हो तो कुछ भी बकने लगती हो "  रागेश   का पारा चढ़ गया।  बहुत   परेशां थे रागेश, उन्हें अलका दीदी पर बहुत गुस्सा आ रहा था - वो इतनी बोडम  कैसे हो सकती थी!

चलो अभी ! रागेश  दहाड़े ,
- बेटा अनुज तुम दरवाजा बंद कर लो , पता नहीं कितनी देर लग जाए !"

- रुको , मैं दीदी को फ़ोन करती हूँ ,
-वरुण , उन्हें पुलिस स्टेशन ले गया है। हम वहीँ जा रहे है।

रागेश ने गाडी उठाई और दोनों चल दिए।  रास्ते भर इरा के आँसू बहते रहे - ये सोच कर की अंकित जाने किस हाल में होगा।  कहीं गलत हाथो में तो नहीं पड़  गया ?? आये दिन सावधान इंडिया में दिखाते थे की बच्चो को किस तरह गलत धंधो में धकेल जा रहा था - और ये तो कितना लाचार ,  कितना निरीह  सा था !

- पूछो कौन से पुलिस स्टेशन आना है ? रागेश ने इरा से कहा।
- हाँ

-दीदी को फ़ोन जोड़ने पर उन्होंने पुलिस स्टेशन का पता बताया।  अगले १५ मिनट में इरा और रागेश पुलिस स्टेशन के बहार थे।
गाडी के रुकते ही इरा पुलिस स्टेशन की ओर लपकी।

चौक में था ये स्टेशन।   ११०० वर्ग स्क्वायर फ़ीट में फैला था  . सामने ही बड़ा हॉल था।  इरा ने नज़र दौड़ाई - दीदी या वरुण दिखे नहीं उसे।  रागेश भी पीछे आ गए थे अब तक।
अचानक दाहिने तरफ के कमरे नुमा जगह में दीदी पुलिस वाले को शायद रेपर्ट लिखा रही थी।

इरा ने अलका  दीदी को देखा।  उससे करीब तीन साल बड़ी थीं  वो।  थकी  हुई , टूटी हुई सी , चेहरे पर आँसुओ की धार से लकीरे बनी थी।  अस्त - व्यस्त सी।

वरुण आया अचानक दूसरे कमरे से ,

- मिला ?? कुछ पता चला राजा का ?

- नहीं मामाजी , मम्मी रिपोर्ट लिखवा रही है ! - वरुण बोला।

सामने से एक PSI आया , बोला - क्या बच्चा ९ साल के करीब का है , दुबला सा ??

- हाँ हाँ ! तीनो एक  बोले !

-उसे गाल पर एक बड़ा सा दाग है ?
- हाँ वही है , इस्पेक्टर साहब ! वरुण बोला !

-कहाँ है वो ? राजेश बेसब्री से  पूछा।
- वो लाल गेट पुलिस चौकी में है अभी - आप लोग वहीँ चले जाइये।

इरा दौड़ी , "दीदी , राजा मिल गया है !! चलिए - लाल गेट पुलिस चौकी में है।, चलिए !!"

-वरुण तुम अलका  को लेकर आओ, मैं और मामीजी पहुँचते है - राजेश ने कहा।

वरुण  अपनी स्कूटी से गलत  गली  में ले मुडा।  राजेश चिल्लाये -  वहां नहीं , इस तरफ जाना है ! लाल गेट पुलिस चौकी  इधर है वरुण!

- इट्स ओके रागेश , राजा मिल गया है ! इरा धीरे से  बोली थी।

छोटी सी पुलिस चौकी थी - कंजस्टेड सी।  एक पतला सा दालान था  L  आकर का - पुराने शहर में थी ये चौकी इसलिए।
सीधी लपक कर चढ़े सभी।  वरुण सबसे पहले दौड़ा !

एक बहुत ही पुराने , धँसे हुए से गंदे मटमैले सोफे पर राजा बैठा था।
वरुण लिपट गया राजा से

राजा - कैसा है ?

इरा भर सी गई थी।  कुछ बोल नहीं पाई।  सब के सामने रोना नहीं चाहती थी , मुठिया भींच ली अपनी , और राजा का सर सहलाया।

दीदी  नहीं गई राजा के पास।  एक भी बार गले नहीं लगाया उसे।  एक भी बार नहीं कहा - कैसा  राजा , और तो और हाथ भी नहीं फेरा  सर पर !

वो पुलिस स्टेशन खस्ता हाल में था - दो टेबल थे।  पीछे के  टेबल के सामने डी तीन कुर्सियां रखी थी।  दो ढाढ़ी सी रखे हुए (मुसलमान से जान पड़ते आदमी थे ) दो तीन कांस्टेबल (कौन जाने किस पोस्ट पर थे ) बैठे थे।

राजा के पास एक औरत और एक आदमी भी थे।

इरा ने पूछा कुछ खाया इसने ?
- हाँ , हम लोग इसे खिला पिला रहे है शाम से , पुलिस वालो ने कहा।

 शायद पीछे और साइड में और कमरे थे , वहां से शायद इंस्पेक्टर थे वो , तीन सितारे लगे थे वर्दी में , आया।

  इरा और राजेश  को देख कर बोला -" कैसे माँ  बाप है आप? आप का लड़का ४ बजे से है यहाँ है  , आप अब आ रहे हो ? शर्म नहीं आती आप लोगो को ! "

रागेश भड़क गए - मैं नहीं हूँ इसका पिता , ये मेरी बहन का बेटा है !

दीदी  सामने आई , बोली - इंस्पेक्टर साहब इनको कुछ मत कहो , मैं माँ हूँ इसकी - मुझे डाँटिए !

- ऐसे कैसे खो गया बच्चा ? अभी तक आपको याद भी नहीं आया था।  हमने तो चार बजे ही पुलिस कण्ट्रोल रूम में मैसेज भेज दिया था की कोई ऐसा बच्चा मिला है।

- मैं अपने तरीके से खोज रही थी इंस्पेक्टर साहब , मैं उसे गोल बाजार में दूकान दूकान ढूंढती रही , जब नहीं मिला तो मैं घर लौट गई।  " दीदी ने थकी,  टूटी आवाज़ में जवाब दिया।

-इधर आइये आप।  प्रूफ क्या है की आप ही उसकी माँ है ?

- प्रूफ इलेक्शन कार्ड है , ड्राइविंग लाइसेंस है साहब !

- नहीं , ये नहीं , आपका ही बेटा  है उसका प्रूफ दीजिये।
- एक मिनट इंस्पेक्टर साहब , मेरे पास फॅमिली pic  है - वरुण ने अपना फ़ोन दिखाया।
हाँ , मेरे पास भी रक्षाबंधन के pics  है सर , इरा ने अपने फ़ोन में अंकित के साथ के फोटो दिखाए।

और फिर तो अगले दो -तीन घंटे , दीदी से बयां लिया , वरुण गया घर कागज़ात लाने , मगर इस दौरान राजा घूमता रहा पुलिस वालो की फाइलो के बीच , कुर्सियों के बीच, बीच बीच में ख़ुशी से चिल्लाता हुआ, दौड़ता रहा।

वो पिछेले ८ घंटो से इन पुलिस वालो के साथ रहा , उसे तो अहसास भी नहीं था , की वो खो गया था , बिछड़ गया था अपनी माँ से ,भाई से और  सब से।   अहसास नहीं था की किस्मत उस पर कितनी मेहरबान थी की वो  किसी नेक आदमी को मिला था।  वो फरिश्ता जो उसे पुलिस स्टेशन तक छोड़ गया था।  उसे कहाँ अहसास  था की वो गुजरात में था इसलिए गलत हाथो में शायद जाने से बच गया था।

बस वो तो वरुण को देख खुश हो गया था।  उसे तो यह भी अहसास नहीं था - की मिलने के बाद उसकी माँ ने उसे न गले लगाया न सर पे हाथ फेरा  था।

वो तो पुरे वक़्त बस सुज़ुका - नोबिता - डोरेमोन  जैसे टूटे फूटे शादाब दोहराता रहा था।
उसे शायद नहीं पता था किसी नोबिता, डोरेमोन और सुज़ुका ने उसको एक नई  ज़िन्दगी दी थी।

सब कुछ ख़त्म होते होते  रात के १-३० जितने हो गए थे। इरा ,रागेश ,वरुण और अलका दीदी अंकित को ले घर जा रहे थे।  वरुण ने अंकित को स्कूटी पर अपनी सीट की आगे बिठाया था।  दीदी से बहुत नाराज़ था वो - अंकित को फिर दीदी के पास नहीं छोड़ना चाहता था।

इरा सोचती रही रास्ते भर - शायद नवरात्री के दिनों में  भरे बाजार में  राजा  का हाथ छूट जाना संजोग था , शायद दीदी का  सात घंटे तक राजा का गुम  होना किसी   को न बताना संजोग  ही था ! राजा के मिलने के बाद उसे देख  न लिपटना , न  सर  पर हाथ फेरना शायद एक संजोग ही था।

 - राजा मिल गया था अब ! कोई मायने नहीं थे अब इन खयालो के !!










शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

एक ग़ज़ल : जो जागे हैं...



जो जागे हैं मगर उठते नहीं  उनको जगाना क्या
खुदी को ख़ुद जगाना है किसी के पास जाना क्या

निज़ाम-ए-दौर-ए-हाज़िर का  बदलने को चले थे तुम
बिके कुर्सी की खातिर तुम तो ,फिर झ्ण्डा उठाना क्या

ज़माने को ख़बर है सब  तुम्हारी लन्तरानी  की
दिखे मासूम से चेहरे ,असल चेहरा छुपाना क्या

न चेहरे पे शिकन उसके ,न आँखों में नदामत है
न  लानत ही समझता है तो फिर दरपन दिखाना क्या

तुम्हारी बन्द मुठ्ठी को समझ बैठे थे लाखों  की
खुली तो खाक थी फिर खाक कोअब आजमाना क्या

वही चेहरे ,वही मुद्दे ,वही फ़ित्ना-परस्ती है
सभी दल एक जैसे  है ,नया दल क्या,पुराना क्या

इबारत है लिखी दीवार पर गर पढ़ सको ’आनन’
समझ जाओ इशारा क्या ,नताइज को बताना क्या 

शब्दार्थ
         निज़ाम-ए-दौर-ए-हाज़िर = वर्तमान काल की शासन व्यवस्था
        लन्तरानी           = झूटी डींगे/शेखी
      नदामत   = पश्चाताप/पछतावा
लानत = धिक्कार
फ़ित्ना परस्ती = दंगा/फ़साद को प्रश्रय देना
नताइज़ = नतीजे  परिणाम

-आनन्द.पाठक-
08800927181

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

एक ग़ज़ल : नहीं उरतेगा अब कोई ....



नहीं उतरेगा अब कोई फ़रिश्ता आसमाँ से
उसे डर लग रहा होगा यहाँ अहल-ए-ज़हाँ से

न कोह-ए-तूर पे उतरेगी कोई रोशनी अब
हमी को करनी होगी रोशनी सोज़-ए-निहाँ से

ज़माना लद गया जब आदमी में आदमी था
अयाँ होने लगे हैं लोग अब आतिश-ज़ुबाँ से

अभी निकला नहीं है क़ाफ़िला बस्ती से आगे
गिला करने लगे हैं लोग  मीर-ए-कारवां से

हमारा राहबर खुद ही यहाँ गुमराह हुआ है
खुदा जाने कहाँ को ले के जायेगा  यहाँ  से

इधर आना तो पढ़ लेना मेरी रूदाद-ए-हस्ती
जिसे मैं कह न पाया था कभी अपनी ज़ुबाँ से

कभी ’आनन’ को भी अपनी दुआ में याद रखना
भला था या बुरा था ,हो रहा रुखसत जहाँ से

शब्दार्थ
अहल-ए-ज़हाँ से   = इस दुनिया के लोगों से
सोज़-ए-निहाँ  से = [दिल के] अन्दर छुपी आग से
आतिश-ज़बां से =आग लगाती बातों से[अग्नि वाणी]
मीर-ए-कारवाँ से = कारवाँ का नेतॄत्व करने वाले से
रूदाद-ए-हस्ती = जीवन-गाथा

-आनन्द.पाठक-
08800927181

सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

एक लघुव्यथा : सबूत चाहिए ....[व्यंग्य]

एक लघु व्यथा : सबूत चाहिए.....[व्यंग्य]

विजया दशमी पर्व शुरु हो गया । भारत में, गाँव से लेकर शहर तक ,नगर से लेकर महानगर तक पंडाल  सजाए जा रहे हैं ,रामलीला खेली जा रही है । हर साल राम लीला खेली जाती है , झुंड के झुंड लोग आते है  रामलीला देखने।स्वर्ग से देवतागण भी देखते है रामलीला -जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" की । भगवान श्री राम  स्वयं सीता और लक्षमण सहित आज स्वर्ग से ही  दिल्ली की रामलीला देख रहे हैं और मुस्करा रहे हैं -  मंचन चल रहा है !। कोई राम बन रहा है कोई लक्ष्मण कोई सीता कोई जनक।सभी स्वांग रच रहे हैं ,जीता कोई नहीं है।स्वांग रचना आसान है ,जीना  आसान नहीं। कैसे कैसे लोग आ गए हैं इस रामलीला समिति में । कैसे कैसे लोग चले आते है  उद्घाटन करने । जिसमें अभी ’रावणत्व’ जिन्दा है वो भी राम लीला में चले आ रहे हैं  ’रामनामी’ ओढ़े हुए ।...लोगो में ’रामत्व’  दिखाई नहीं पड़ रहा है ।फिर भी रामलीला हर साल मनाई जाती है ...रावण का हर साल वध होता है  और  फिर  पर्वोपरान्त जिन्दा हो जाता है । रावण नहीं मरता। रावण को मारना है तो ’लोगो के अन्दर के रावणत्व’ को मारना होगा ...रामत्व जगाना होगा...
भगवान मुस्कराए

इसी बीच हनुमान जी अपनी गदा झुकाए आ गए और आते ही भगवान श्री राम के चरणों में मुँह लटकाए  बैठ गए। हनुमान जी आज बहुत उदास थे। दुखी थे।
आज हनुमान ने ’जय श्री राम ’ नहीं कहा - भगवान श्री राम ने सोचा।क्या बात है ?  अवश्य कोई बात होगी  अत: पूछ बैठे --’ हे कपीश तिहूँ लोक उजाकर  ! आज आप दुखी क्यों  हैं ।को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो  । आप तो स्वयं संकटमोचक हैं ।आप पर कौन सी विपत्ति आन पड़ी  कि आप दुखी हैं ??आप तो  ’अतुलित बलधामा’ है आज से पहले आप को कभी  मैने उदास होते नहीं देखा ।क्या बात है हनुमन्त !
भगवान मुस्कराए

-अब तो मैं  नाम मात्र  का ’अतुलित बलधामा’ रह गया ,प्रभु ! बहुत दुखी हूं । इस से पहले मै इतना दुखी  कभी न हुआ ।। कल मैं धरती लोक पर गया था दिल्ली की राम लीला देखने । वहाँ  एक आदमी मिला......सबूत मांग रहा था.....
अरे!  वही धोबी तो नही था अयोध्या वाला ?- भगवान श्री राम ने बात बीच ही में काटते हुए कहा-" सीता ने तो अपना ’सबूत’  दे दिया था..
नही प्रभु ! वो वाला धोबी  नहीं था ,मगर वह आदमी भी  काम कुछ कुछ वैसा ही करता है ..- धोता रहता है  सबको रह रह कर ।वो सीता मईया का नही ,मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का सबूत माँग रहा था
""सर्जिकल स्ट्राईक" और आप ? कौन सा , हनुमान ??-भगवान श्री राम चौंक गए
 ’ स्वामी ! वही  स्ट्राईक ,जो लंका में घुस कर 40-50 राक्षसों को मारा था...रावण के बाग-बगीचे उजाड़े थे..अशोक वाटिका उजाड़ दी थी ...लंका में आग लगा दी.....  रावण के सेनापति को पटक दिया था । अब आज एक  आदमी ’सबूत’ माँग रहा है...
उधर लंका में सारे राक्षस गण जश्न मना रहे ,,,,..,नाच रहे है..... गा रहे हैं ..ढोल-ताशे बजा रहे है ..लंकावाले कह रहे हैं कि  सही आदमी है  वह ....ग़लत जगह फँस गया है ...माँग रहे हैं  उसे । कह रहे हैं  लौटा दो अपना  आदमी है....,भेंज दो उसे  इधर...
भगवान मुस्कराए

’हे महावीर विक्रम बजरंगी ”- भगवान श्री राम ने कहा -"तुम्हारे पास तो ’भूत-पिशाच निकट नहीं आवें तो यह आदमी तुम्हारे पास कैसे आ गया . ..तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो ..जो हर  किसी की ’डीग्री ’ का सबूत माँगता है  --किसी का सर्टिफ़िकेट माँगता है...जो -"स्वयं सत्यम जगत मिथ्या" समझता है अर्थात स्वयं को सही और जगत को फ़र्जी समझता है --तुम उस आदमी की तो बात नहीं कर रहे हो जिसकी जुबान लम्बी हो गई थी और डाक्टरो ने काट कर ठीक कर दिया है
’सही पकड़े है ’-हनुमान ने कहा
-हे हनुमान ! तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो जिसकी सूरत मासूम सी है.....
-बस सूरत ही मासूम है..प्रभु !- हाँ ..हाँ  प्रभु !वही ।........कह रहा था लंका में कोई "सर्जिकल स्ट्राईक"  हुई ही नही ।वह तो सब ’वाल्मीकि ,तुलसीदास ,राधेश्याम रामानन्द सागर का  ’मीडिया क्रियेशन’ था वरना कोई एक वानर इतना बड़ा काम अकेले कर सकता है और वो भी लंका में जा कर ...कोई सबूत नहीं है ...सारे कथा वाचको ने .पंडितों ने.....रामलीला वालों ने साल-ओ-साल यही दुहराया मगर ’सबूत’ किसी ने नही दिया । प्रभु ! अब वह सबूत माँग रहा है
 भगवन ! अगर मुझे मालूम होता कि वह व्यक्ति मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का किसी दिन सबूत माँगेगा तो रावण से  ’सर्टिफिकेट’ ले लिया होता -भईया एक सबूत दे दे इस लंका-दहन का । नहीं तो  अपनी जलती पूँछ समुन्दर में ही नहीं बुझाता अपितु वही जलती हुई पूँछ लेकर आता और  दिखा देता -दे्खो ! यह है ’सबूत’
भगवान मन्द मन्द मुस्कराए और बोले--नहीं हनुमान नहीं । ऐसे तो उसका मुँह ही झुलस जाता
भगवन ! उसे अपना मुँह झुलसने की चिन्ता नहीं .अपितु सबूत की चिन्ता है ,,,अगले साल देश में कई जगह चुनाव होना है न

इस बार भगवान  नहीं मुस्कराए ,अपितु गहन चिन्तन में डूब गए...
प्रभुवर ! आप किस चिन्ता में डूब गए ? -हनुमान जी ने पूछा
हे केशरी नन्दन! कहीं वो व्यक्ति कल यह न कह दे कि ’राम-रावण’ युद्ध हुआ ही नहीं  था ,,तो मैं कहाँ से सबूत लाऊँगा ???मैनें तो ’विडियोग्राफी भी नहीं करवाई थी ।
अस्तु

-आनन्द.पाठक

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

एक लघुव्यथा : मुज़रिम हाज़िर हो....[व्यंग्य]

एक लघुव्यंग्य व्यथा   : मुज़रिम हाज़िर हो....

’आनन्द.पाठक पुत्र [स्व0] श्री रमेश चन्द्र पाठक साकिन औडिहार परगना सैद्पुर जिला गाज़ीपुर वर्तमान  निवासी गुड़गाँव.....हाज़िर हो"- अर्दली ने अदालत के बाहर आवाज़ लगाई
’अबे ! शार्ट में नहीं बोल सकता  क्या..? पूरे खनादान को लपेटना ज़रूरी था क्या?-मैने विरोध जताया
’आप ने 5-रुपया दिया था क्या ? वो तो भला मनाईए कि मैने 4-पुरखों तक नहीं लपेटा-
मैने 5-रुपए थमाए और बोला-" बेटा आगे से ध्यान रखना’
’ठीक है स्साब ’
और मैं अदालत कक्ष में बने कठघरे में जा कर खड़ा हो गया
-आप का कोई वकील ?--जज ने पूछा
-नहीं ,मैं ही काफी हूँ । सच को झूठ की क्या ज़रूरत ,जज साहब !
’ठीक है। सरकारी वकील ज़िरह शुरु कर सकते है?
सरकारी वकील -’हाँ ! तो आप का नाम ?
-आनन्द पाठक-
-पिता का नाम ?
-उस अर्दली से पूछ लो जो अभी अभी आवाज़ लगा रहा था ’
मै निश्चिन्त था कि मेरे 5/- से अब अर्दली  मुँह नहीं खुलेगा
 सरकारी वकील ने कहा-’मैं आप से पूछ रहा हूँ । यह आप की साहित्यिक मंडली नहीं है कि  आप जो चाहे बोल दें लिख दें ..यह अदालत है अदालत ।यहाँ कुछ भी बोलने की स्वतन्त्रता नहीं । आप का पेशा ?
-व्यंग्य लिखना-
-मैं आप का पेशा पूछ रहा हूं }रोग नहीं’- सरकारी वकील ने कुटिल मुस्कान लाते हुए पूछा
-तो आप डाक्टर हैं क्या ?-
-अच्छा ! तो आप व्यंग्य लिखते हैं - तो आप व्यंग्य क्यों लिखते है
-कि समाज को आईना दिखाना है
- समाज को आईना क्यों दिखाना है ?समाज से बिना पूछे आईना दिखाने से अनधिकॄति ’ट्रेसपासिंग’ का केस बनता है। जज साहब नोट किया जाए
-कि उसको अपना चेहरा नज़र आए
-तुम्हे मालूम है समाज अपना विभत्स और कुरूप चेहरा देख कर डर भी सकता है,.... तुम समाज में डर फैला रहे हो-इस प्रकार से आतंक फैलाने से तुम्हारे ऊपर ’आतंक’ फ़ैलाने का केस बनता है-जज साहब नोट किया जाए
-नहीं वो डरता नहीं है ,हँसता है  ,वो समझता है कि इस आईने में उसका चेहरा नहीं ,किसी और का चेहरा है
-तुम्हें मालूम है कि तुम्हारे इस तरह आईना चमकाने से कुछ लोगों की आँखे चौधियाँ गई ....कुछ लोग अन्धे भी हो गए है ..जमीर धुँधला गया है अब उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता ,,न भ्रष्टाचार..न बेईमानी..न भाई भतीजावाद,न सदाचार ,,न अपना कुरूप चेहरा...इस तरह से तुम समाज में वि्कृति फैला रहे हो? अन्धों को भी आईना दिखाते हो क्या ??
-नहीं । अन्धी क़ौम को आईना दिखाने का कोई लाभ नहीं
-तो इस का मतलब  तुम ’हानि-लाभ’ देख कर लिखने का व्यापार करते हो ?-जज साहब नोट किया जाय ।यह आदमी  बिना ’लाईसेन्स’ लिए व्यापार करता है -इस पर "अवैध व्यापार’ का केस बनता है
-नहीं मैं कहता हूं~
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना  मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
-सूरत बदली क्या ? -वकील साहब ने पूछा --तुम्हारे लेखन से समाज का क्या भला हुआ क्या ...लोग पढ़ते है और कहते हैं ’मज़ा आ गया ’....क्या बखिया उधेड़ी है....क्या जम कर धुलाई की है...क्या ’लतियाया है ? पानी पिला दिया ... बस यही न ।तुम्हारे लिखने से समाज से  भ्रष्टाचार मिट गया क्या...?? समाज सुधर गया.क्या .?? नहीं न ,तो फिर क्यों लिखते हो.....
-वकील साहब !
दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर
हर हथेली खून से तर और ज़्यादा  बेक़रार

सरकारी वकील -और कौन कौन से लोग हैं तुम्हारे ’गिरोह’ में जिस से तुम्हे इस प्रकार के ’आतंकी ’कामों में मदद मिलती है
-गिरोह नहीं है ,’वर्ग’ कहिए वकील साहब ’वर्ग’ .....प्रेरणा  मिलती है ,...... बहुत हैं -  अकेले नहीं है हम ---हरिशंकर परसाई जी है...शरद जोशी जी है ..गोपाल चतुर्वेदी जी है..लतीफ़ घोंघी.....ज्ञान  चतुर्वेदी जी है ...... शौक़त थानवी कृशन चन्दर.. फ़्रिंक तौंसवी किन किन का नाम गिनाउँ.....और गिनाऊँ क्या....
-अरे भूतिए ! इन विभूतियों के नाम  अपने नाम के साथ क्यों घसीट रहा है ? ये महान विभूतियां है ..सम्मानित विभूतियाँ है ...पुरस्कॄति विभूतियां है ..ये समाज सुधारते है ..ये तुम्हारी जैसी गंदगी नहीं फैलाते....
-तो क्या हुआ ? दर्द तो एक जैसा है ....प्यास तो एक जैसी है...
-अच्छा तो पैसे के मामले में तेरी ’प्यास’ और अदानी -अम्बानी की ’ प्यास’ एक जैसी है क्या ???

आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया -आप सिर्फ़ काम की ही बातें पूछें  फ़ालतू बातों से अदालत का वक़्त ज़ाया न करें-जज साहब ने हिदायत की
अरे वकील स्साब ! यह टटपूंजिया ही सही पर है व्यंग्य लेखक वकील स्साब ...व्यंग्य लेखक --इस से आप बहस में नहीं जीत पायेंगे--- वादी पक्ष के लोगो ने अलग से हिदायत की
आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया --जज साहब ने कहा -हो गया ,हो गया । बहस पूरी हो गई
--------    --------
जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाया-- ’तमाम गवाहों के बयानात को मद्दे नज़र रखते हुए और मुज़रिम के बयानात को दरकिनार करते हुए अदालत इस नतीज़े पर पहुँची है कि मुज़रिम अपने लेखन से समाज मै चेतना फैलाने की कोशिश कर रहा है इस से जनता में क्रान्ति के बीज पड़ सकते है ...जनता आन्दोलन कर सकती है ,,बगावत कर सकती है अत: ऐसे लेखकों का ’बाहर ’रहना जनहित में उचित नहीं है । साथ ही अदालत इस लेखक के व्यंग्य लेखन की ’नौसिखुआपन्ती’ और ’ कच्चापना’  के देखते हुए  और सहानुभूतिपूर्वक  विचार करते हुए ताज़िरात-ए-हिन्द की दफ़ा  अलाना..फलाना...चिलाना और .धारा अमुक अमुक अमुक ......में इसे ’अन्दर’ करती है और 3-महीने की क़ैद-ए-बा मश्श्क़त  की सज़ा देती है । तुम्हें इस सज़ा के बारे में कुछ कहना है
"हुज़ूर ..जेल में मुझे कुछ सादे पन्ने मुहैय्या कराने की इज़ाजत दी जाये-मैने  गुज़ारिश की
-मंज़ूर है
-और एक अदद ’कलम’ भी
-नहींईईईईईई........ जज साहब की अचानक चीख निकल गई ...."नहीं ,’कलम’ की इज़ाजत नहीं दी जा सकती ...’कलम’ लेखक का हथियार होता है और जेल में ’खतरनाक हथियार’ रखने की इज़ाजत नही है
------------------
वादी पक्ष ने तालियाँ बजाई ..जज साहब की जय हो...एक और आईनादार ’अन्दर ’ गया ....साहब ने सज़ा नहीं , सज़ा-ए-मौत सुनाई है ---अगर सच्चा लेखक होगा तो 3-महीने में  "क़लम’ के बिना  यूँ ही मर जायेगा वरना तो ये भी कोई ’टाइम-पासू"-लेखक होगा

-आनन्द.पाठक-
08800927181
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गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016

एक क़ता

एक क़ता


नशा पैसे का हो या पद का, सर चढ़ बोलता है
बहक जाए कभी तो  राज़-ए-दिल भी खोलता है

बलन्दी आसमां  सी  है  मगर ईमान  बौना
जहाँ ज़र दिख गया  ईमान उसका डोलता है

ज़ुबाँ शीरी ,नरम लहजा , हलावत गुफ़्तगू  में
ज़ुबाँ जब खोलता है  तो हलाहिल घोलता है

नशा इतना कि इन्सां को नहीं इन्सां  समझता
हक़ीक़त ये कि खिड़की तक नहीं वो खोलता है


शब्दार्थ
ज़र   =सोना/धन
शीरी = मीठी
हलावत = मधुर
हलाहिल =हलाहल/विष/ज़हर

-आनन्द पाठक-
08800927181

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

“फ़र्ज़ी” सर्जिकल स्ट्राइक्स
अरविन्द केजरीवाल, संजय निरुपम, चिदंबरम वगेरा ने भारतीय सेना की पी ओ के में की गयी कार्यवाही को लेकर तरह-तरह के ब्यान दिए हैं. निरुपम ने तो इन स्ट्राइक्स को “फर्जी” तक करार दे दिया है. अब कुछ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि उन्हें सेना पर पूरा विश्वास है लेकिन पाकिस्तान के दुष्-प्रचार का जवाब देने के लिए सरकार को इस कार्यवाही की विडियो जारी कर पाकिस्तान को करारा जवाब देना चाहिये.
तर्क के लिए मान भी लेते हैं कि यह सभी महानुभाव पाकिस्तान के दुष्-प्रचार से बहुत दुःखी हैं और इन्हें बहुत चिंता हो रही है कि ऐसे दुष्-प्रचार से सेना की आन-बान-शान को बहुत क्षति पहुंचेगी. पर इन लोगों ने यह कैसे मान लिया कि भारत की सरकार या सेना द्वारा जारी किये गए किसी भी वीडियो को पाकिस्तान सही मान लेगा और स्वीकार कर लेगा कि भारत की सेना ने सफलतापूर्वक सीमा पार कर कई आतंकवादियों को मार गिराया.
अलग-अलग आतंकवादी हमलों के जो भी सबूत पाकिस्तान को अब तक दिए गए थे क्या उन सब को पाकिस्तान ने सच मान कर उन पर कोई कार्यवाही की? चिदंबरम केंद्र में मंत्री रह चुके हैं उन्हें तो इतनी समझ होनी चाहिए कि पाकिस्तान किसी भी सबूत को सही नहीं मानेगा. क्योंकि सही मान लेना का अर्थ होगा यह मान लेना कि पाकिस्तान आतंकवादियों को संरक्षण दे रहा है. और अपनी सेना की पराजय भी स्वीकारनी होगी.   
ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक्स के वीडियो या सबूत किसी भी देश की सेना जारी नहीं करती. पाकिस्तान को अगर यह वीडियो मिल जाएँ तो इन वीडियो को विश्लेषण कर उसकी सेना जान सकती है कि भारत की सेना ने किस प्रकार के हथियार इस्तेमाल किये, किस प्रकार के उपकरण वह साथ लाये, कैसी योजना थी, कैसी तैयारी थी और क्या इन स्ट्राइक्स में कोई कमज़ोरियाँ थीं जिसे समझ कर भविष्य में होने वाली स्ट्राइक्स का प्रतिकार की योजना बन सके.
आश्चर्य है की सत्ता में बैठे लोग भी इस हद तक गिर सकते हैं. सुना है कि आज केजरीवाल पाकिस्तान के समाचार पत्रों में छाये हुए हैं. कल शायद निरुपम, अजय आलोक  और चिदम्बरम उन अखबारों की सुर्खियाँ बनेगें. पाकिस्तान के जिस दुष्-प्रचार का एक करारा जवाब यह नेता सरकार और सेना से चाहते हैं उस प्रचार को इन सब ने ही तो प्रसांगिक बना दिया है.
आज हर मीडिया चैनल पर इसी की तो चर्चा हो रही है. पाकिस्तान के दुष्-प्रचार की सबसे बड़ी सफलता तो यही है की हम स्वयं ही अपनी सेना की कार्यवाही पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं. अगर इससे सेना का मनोबल गिरता है तो पाकिस्तान अपने उद्देश्य में सफल ही माना जाएगा.
राजनेता समझें न समझें, हर देशवासी को समझना होगा कि सेना की ऐसी किसी कार्यवाही का ब्यौरा जारी नहीं किया जाता. हमारी सरकार और सेना को पाकिस्तान के दुष्-प्रचार का नहीं बल्कि उसके द्वारा पोषित आतंकवाद का करारा जवाब देना है.
इन तथाकथित नेताओं के दबाव में आकर सरकार को ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे हमारी सेना की शक्ति या मनोबल में कमी आये.

सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

राष्ट्र वाद

राष्ट्र वाद देश भक्ति को जो रोग कहता है
ऐसा नीच बुद्धिजीवी,विष बेल बोता है
सीमा पार वाले दुष्ट .आततायियों के लिये
झूठ-मूठ आँसुंओं से,नयन भिगोता है
जाति-पाति के सहारे फूट डाल राज करूँ
 रात दिन पामर ये सपने संजोता है
कितना जतन कर बाँट ना सकेगा हमे
राष्ट्र वादियों के लिये  देश बडा होता है
 श्यामा अरोरा

रविवार, 2 अक्टूबर 2016

उफ्फ्फ्फ! ये असहिष्णुता - एक टिप्पणी

हद हो गई भई!
असिहष्णुता अब देश की सीमायें भी पार कर गई। ये मोदी जी के राज में असहिष्णुता किस हद तक जा चुकी है। ज़रा सा आतंक बर्दाश्त नहीं होता इस सरकार से। बेचारे अपने बाप की गोद में खेलते मासूमों को मार दिया। अभी उन मासूमों ने बिगाड़ा ही क्या था। अभी तो उनको कितने बम फोड़ने थे। भारत की जनसँख्या कम करने का चुनौतीपूर्ण काम करना था। जेल की बिरयानी खानी थी। इस असहिष्णु सरकार ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। 
अब तो आमिर भाई की पत्नी विदेश जाने के लिए बोरिया समेट चुकी होगी। पर जायेगी भी कहाँ अब तो ये सरकार सीमा पार भी अपनी पहुँच बनाने लगी है। बहुत सारे लोग अवार्ड के साथ साथ रिवॉर्ड भी वापस करने लगेंगे। अब तथाकथित बुद्धिजीवियों की विशेष कॉफी हाउसों में बैठकें होंगी। महंगी शराब के घूँट लगाए जाएंगे। सरकार को भर भर कर कोसा जायगा। रविश भाई को गूगल करके नई नई कहानियाँ निकालनी पड़ेंगी। 
उफ्फ्फ्फ! ये असहिष्णुता, कितने लोगों का काम बढ़ जायेगा।