सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

एक लघुव्यथा : सबूत चाहिए ....[व्यंग्य]

एक लघु व्यथा : सबूत चाहिए.....[व्यंग्य]

विजया दशमी पर्व शुरु हो गया । भारत में, गाँव से लेकर शहर तक ,नगर से लेकर महानगर तक पंडाल  सजाए जा रहे हैं ,रामलीला खेली जा रही है । हर साल राम लीला खेली जाती है , झुंड के झुंड लोग आते है  रामलीला देखने।स्वर्ग से देवतागण भी देखते है रामलीला -जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" की । भगवान श्री राम  स्वयं सीता और लक्षमण सहित आज स्वर्ग से ही  दिल्ली की रामलीला देख रहे हैं और मुस्करा रहे हैं -  मंचन चल रहा है !। कोई राम बन रहा है कोई लक्ष्मण कोई सीता कोई जनक।सभी स्वांग रच रहे हैं ,जीता कोई नहीं है।स्वांग रचना आसान है ,जीना  आसान नहीं। कैसे कैसे लोग आ गए हैं इस रामलीला समिति में । कैसे कैसे लोग चले आते है  उद्घाटन करने । जिसमें अभी ’रावणत्व’ जिन्दा है वो भी राम लीला में चले आ रहे हैं  ’रामनामी’ ओढ़े हुए ।...लोगो में ’रामत्व’  दिखाई नहीं पड़ रहा है ।फिर भी रामलीला हर साल मनाई जाती है ...रावण का हर साल वध होता है  और  फिर  पर्वोपरान्त जिन्दा हो जाता है । रावण नहीं मरता। रावण को मारना है तो ’लोगो के अन्दर के रावणत्व’ को मारना होगा ...रामत्व जगाना होगा...
भगवान मुस्कराए

इसी बीच हनुमान जी अपनी गदा झुकाए आ गए और आते ही भगवान श्री राम के चरणों में मुँह लटकाए  बैठ गए। हनुमान जी आज बहुत उदास थे। दुखी थे।
आज हनुमान ने ’जय श्री राम ’ नहीं कहा - भगवान श्री राम ने सोचा।क्या बात है ?  अवश्य कोई बात होगी  अत: पूछ बैठे --’ हे कपीश तिहूँ लोक उजाकर  ! आज आप दुखी क्यों  हैं ।को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो  । आप तो स्वयं संकटमोचक हैं ।आप पर कौन सी विपत्ति आन पड़ी  कि आप दुखी हैं ??आप तो  ’अतुलित बलधामा’ है आज से पहले आप को कभी  मैने उदास होते नहीं देखा ।क्या बात है हनुमन्त !
भगवान मुस्कराए

-अब तो मैं  नाम मात्र  का ’अतुलित बलधामा’ रह गया ,प्रभु ! बहुत दुखी हूं । इस से पहले मै इतना दुखी  कभी न हुआ ।। कल मैं धरती लोक पर गया था दिल्ली की राम लीला देखने । वहाँ  एक आदमी मिला......सबूत मांग रहा था.....
अरे!  वही धोबी तो नही था अयोध्या वाला ?- भगवान श्री राम ने बात बीच ही में काटते हुए कहा-" सीता ने तो अपना ’सबूत’  दे दिया था..
नही प्रभु ! वो वाला धोबी  नहीं था ,मगर वह आदमी भी  काम कुछ कुछ वैसा ही करता है ..- धोता रहता है  सबको रह रह कर ।वो सीता मईया का नही ,मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का सबूत माँग रहा था
""सर्जिकल स्ट्राईक" और आप ? कौन सा , हनुमान ??-भगवान श्री राम चौंक गए
 ’ स्वामी ! वही  स्ट्राईक ,जो लंका में घुस कर 40-50 राक्षसों को मारा था...रावण के बाग-बगीचे उजाड़े थे..अशोक वाटिका उजाड़ दी थी ...लंका में आग लगा दी.....  रावण के सेनापति को पटक दिया था । अब आज एक  आदमी ’सबूत’ माँग रहा है...
उधर लंका में सारे राक्षस गण जश्न मना रहे ,,,,..,नाच रहे है..... गा रहे हैं ..ढोल-ताशे बजा रहे है ..लंकावाले कह रहे हैं कि  सही आदमी है  वह ....ग़लत जगह फँस गया है ...माँग रहे हैं  उसे । कह रहे हैं  लौटा दो अपना  आदमी है....,भेंज दो उसे  इधर...
भगवान मुस्कराए

’हे महावीर विक्रम बजरंगी ”- भगवान श्री राम ने कहा -"तुम्हारे पास तो ’भूत-पिशाच निकट नहीं आवें तो यह आदमी तुम्हारे पास कैसे आ गया . ..तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो ..जो हर  किसी की ’डीग्री ’ का सबूत माँगता है  --किसी का सर्टिफ़िकेट माँगता है...जो -"स्वयं सत्यम जगत मिथ्या" समझता है अर्थात स्वयं को सही और जगत को फ़र्जी समझता है --तुम उस आदमी की तो बात नहीं कर रहे हो जिसकी जुबान लम्बी हो गई थी और डाक्टरो ने काट कर ठीक कर दिया है
’सही पकड़े है ’-हनुमान ने कहा
-हे हनुमान ! तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो जिसकी सूरत मासूम सी है.....
-बस सूरत ही मासूम है..प्रभु !- हाँ ..हाँ  प्रभु !वही ।........कह रहा था लंका में कोई "सर्जिकल स्ट्राईक"  हुई ही नही ।वह तो सब ’वाल्मीकि ,तुलसीदास ,राधेश्याम रामानन्द सागर का  ’मीडिया क्रियेशन’ था वरना कोई एक वानर इतना बड़ा काम अकेले कर सकता है और वो भी लंका में जा कर ...कोई सबूत नहीं है ...सारे कथा वाचको ने .पंडितों ने.....रामलीला वालों ने साल-ओ-साल यही दुहराया मगर ’सबूत’ किसी ने नही दिया । प्रभु ! अब वह सबूत माँग रहा है
 भगवन ! अगर मुझे मालूम होता कि वह व्यक्ति मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का किसी दिन सबूत माँगेगा तो रावण से  ’सर्टिफिकेट’ ले लिया होता -भईया एक सबूत दे दे इस लंका-दहन का । नहीं तो  अपनी जलती पूँछ समुन्दर में ही नहीं बुझाता अपितु वही जलती हुई पूँछ लेकर आता और  दिखा देता -दे्खो ! यह है ’सबूत’
भगवान मन्द मन्द मुस्कराए और बोले--नहीं हनुमान नहीं । ऐसे तो उसका मुँह ही झुलस जाता
भगवन ! उसे अपना मुँह झुलसने की चिन्ता नहीं .अपितु सबूत की चिन्ता है ,,,अगले साल देश में कई जगह चुनाव होना है न

इस बार भगवान  नहीं मुस्कराए ,अपितु गहन चिन्तन में डूब गए...
प्रभुवर ! आप किस चिन्ता में डूब गए ? -हनुमान जी ने पूछा
हे केशरी नन्दन! कहीं वो व्यक्ति कल यह न कह दे कि ’राम-रावण’ युद्ध हुआ ही नहीं  था ,,तो मैं कहाँ से सबूत लाऊँगा ???मैनें तो ’विडियोग्राफी भी नहीं करवाई थी ।
अस्तु

-आनन्द.पाठक

6 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 11/10/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  2. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-2016) के चर्चा मंच "विजयादशमी की बधायी हो" (चर्चा अंक-2492) पर भी होगी!
    श्री राम नवमी और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. उत्तर
    1. आ0 ज्योति जी
      आप का धन्यवाद कि कथा पसन्द आई ..वैसे भी यह ’कथा; नहीं ’व्यथा" थी-लघुव्यथा----हा हा हा

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