Meena sharma:
मेघ-राग
पुरवैय्या मंद-मंद,
फूल रहा निशिगंध,
चहूँ दिशा उड़े सुगंध,
कण-कण महकाए...
शीतल बहती बयार,
वसुधा की सुन पुकार,
मिलन चले हो तैयार,
श्यामल घन छाए....
गरजत पुनि मेह-मेह
बरसत ज्यों नेह-नेह
अवनी की गोद भरी
अंकुर उग आए....
अंग-अंग सिहर-सिहर,
सहम-सहम ठहर-ठहर
प्रियतम के दरस-परस,
जियरा अकुलाए....
स्नेह-सुधा से सिंचित,
कुछ हर्षित, कुछ विस्मित,
कहने कुछ गूढ़ गुपित
अधर थरथराए....
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