शनिवार, 13 मई 2017

एक ग़ज़ल : हौसला है दो हथेली है----



हौसला है ,दो हथेली है , हुनर है
किस लिए ख़ैरात पे तेरी नज़र है

आग दिल में है बदल दे तू ज़माना
तू अभी सोज़-ए-जिगर से बेख़बर है

साजिशें हर मोड़ पर हैं राहजन के
जिस तरफ़ से कारवाँ की रहगुज़र है

डूब कर गहराईयों से जब उबरता
तब उसे होता कहीं हासिल गुहर है

इन्क़लाबी मुठ्ठियाँ हों ,जोश हो तो
फिर न कोई राह-ए-मंज़िल पुरख़तर है

ज़िन्दगी हर वक़्त मुझको आजमाती
एक मैं हूं ,इक मिरा शौक़-ए-नज़र है

लाख शिकवा हो ,शिकायत हो,कि ’आनन’
ज़िन्दगी फिर भी हसीं है ,मोतबर है 

-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
सोज़-ए-जिगर = दिल की आग
राहजन  = लुटेरे [इसी से राहजनी बना है]
गुहर   = मोती
पुरख़तर = ख़तरों से भरा
शौक़-ए-नज़र =चाहत भरी नज़र

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-05-2017) को
    "लजाती भोर" (चर्चा अंक-2631)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. ---------------------------------------------------------------------------------------------
    शहर मा जाके रहय लाग जब से आपन गाँव।
    भरी दुपहरी आँधर होइगै लागड़ होइ गै छाँव। ।

    गाँवन कै इतिहास बन गईं अब पनघट कै गगरी।
    थरी कोनइता मूसर ज्यतबा औ कांडी कै बगरी। ।
    गड़ा बरोठे किलबा सोचइ पारी आबै माव ।

    हसिया सोचै अब कब काटब हम चारा का ज्यांटा।
    सोधई दोहनिया मा नहि बाजै अब ता दूध का स्यांटा। ।
    काकू डेरी माही पूंछै दूध दही का भाव।

    दुर्घट भै बन बेर बिही औ जामुन पना अमावट।
    ''राजनीत औ अपराधी ''अस सगली हाट मिलावट। ।
    हत्तियार के बेईमानी मा डगमग जीवन नाँव।

    जब से पक्छिमहाई बइहर गाँव मा दीन्हिस खउहर।
    उन्हा से ता बाप पूत तक करै फलाने जउहर। ।
    नात परोसी हितुअन तक मां एकव नही लगाव।

    कहै जेठानी देउरानी के देख देख के ठाठ ।
    हम न करब गोबसहर गाँव मा तोहरे बइठै काठ। ।
    हमू चलब अब रहब शहर मा करइ कुलाचन घाव।

    नाती केर मोहगरी ''आजा'' जुगये आस कै बाती।
    बीत रहीं गरमी कै छुट्टी आयें न लड़िका नाती। ।
    खेर खूंट औ कुल देउतन का अब तक परा बधाव।


    ममता के ओरिया से टपकें अम्माँ केर तरइना।
    फून किहिन न फिर के झाँकिन दादू बहू के धइन.। ।
    यहै रंझ के बाढ़ मां हो थै लउलितियन का कटाव।
    शहर मा जाके ----------------------------------------
    हेमराज हंस --9575287490

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