शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

विषमता जीवन की

ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं के समक्ष
बनी ये झुग्गियां
विषमता का देती परिचय
मारती हैं तमाचा समाज के मुख पर
चलता है यहां गरीबी का नंगा नाच
भूखे पेट नंगे तन
भटकता भारत का भविष्य
मांगता जीवन की चंद खुशियां
जिंदगी जीने की जद्दोजहद
मजदूरी करते मां-बाप
दो वक्त की रोटी की चिंता
में जूझता जीवन
न सुविधा, न शिक्षा
न स्वच्छता, न पोषण
बस शोषण ही शोषण
मारता है तमाचा देश की व्यवस्था पर
जो बंद एसी कमरों में बैठकर
बनाती भारत के विकास की योजनाएं
करके बड़ी - बड़ी बातें
जो धरातल पर कम ही होती साकार
इसलिए झुग्गियों का हो रहा विस्तार
भारत में पनपता एक भारत
जीता विषमताओं का जीवन
सिसकता बचपन
कचरे के ढेर में ढूंढता खुशियां
मारता है तमाचा
उन समाज के ठेकेदारों पर
जो करते समाज-सुधार की बातें
बातों से किसी का कहां भला होता है
बातों से कहां किसी का पेट भरता है??

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


चित्र गूगल से साभार 


7 टिप्‍पणियां:

  1. सादर आभार आपका आदरणीया यशोदा जी 🙏

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  2. सादर आभार आपका यशोदा जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर आभार आपका आदरणीय 🙏 मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  4. अभिलाषा जी, सुन्दर, विचारोत्तेजक कविता !
    हमारे देशभक्त, हमारे समाज-सेवक, हमारे भाग्य-विधाता, ये सब कोमल-ह्रदय वाले हैं. ये बेचारे गरीबी और गरीबों को सहन नहीं कर पाते हैं. अदम गौंडवी की तर्ज़ पर मैंने कहा है -
    'हाथ में जाम रहे, प्लेट में सूखा मेवा,
    ए. सी. कमरे ही मुमकिन है, वतन की सेवा.'

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    1. सादर आभार आपका 🙏 आपकी टिप्पणी सदैव
      उत्साहवर्धन करती है। बहुत अच्छी बात कही है आपने यही तो होरहा है अगर कोई नेक बंदा कुछ
      करना भी चाहे तो सियासत में उसे कुछ करने ही नहीं दिया जाता है आशा है आप आगे भी
      मेरा उत्साहवर्धन करते रहेंगे।

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