बुधवार, 16 जनवरी 2019

एक व्यंग्य : आँख दिखाना-----

एक व्यंग्य : आँख दिखाना

--आज उन्होने फिर आँख दिखाई

और आँख के डा0 ने अपनी व्यथा सुनाई--" पाठक जी !यहाँ जो मरीज़ आता है ’आँख दिखाता है " - फीस माँगने पर ’आँख दिखाता है ’। क्या मुसीबत है ---।

--" यह समस्या मात्र आप की नहीं ,राजनीति में भी है डा0 साहब " मैने ढाँढस बँधाते हुए कहा-"जब कोई अपना गठबन्धन छोड़ कर सत्तारूढ़ ’गठ बन्धन ’में आता है तो ’आँखें झुकाते’--नज़रे मिलाते हुए आता है और जाता है तो ’आँख दिखाते" हुए जाता है।
-आज उसने फिर आंख दिखाई
उन दिनों, जब मैं जवान हुआ करता था और आँखें मिलाने की स्थिति में था ।और जब मैने " उस से"आँख मिलाई तो उसने ’आँखे झुकाई’ । इसी मिलाई- झुकाई में पता नहीं कहाँ से उसका मुआ बाप आ गया और लगा आँखें दिखाने । वो तो भला हुआ कि पिटते-पिटते बचा।
मगर राजनीति में ’आँख दिखाना ’ का मतलब घटक दल का सत्तारूढ़ पार्टी को ’संदेश’ देना । ।वहाँ ’संदेशों’ का आदान-प्रदान ऐसे ही होता है।
विरोधी पार्टी आपस में कभी आँख नहीं दिखाते --बस आँखे मिलाते है और ’गठबन्धन’ बनाते है ।जब ज़रा और ’आंख दिखाना हुआ तो ’महागठबन्धन ’ बताते है -भले ही 2-आदमियों का गठबन्धन क्यों न हो। इससे जनता पर प्रभाव पड़ता है।
आँख दिखाने का काम सत्ता-पक्ष वाली पार्टियाँ करती रहती है -समय समय पर । अपने को ज़िन्दा समझवाने का एहसास कराने के लिए ।
--आज नेता जी ने फिर आँख दिखाई
अध्यक्ष जी ने पूछ ही लिया-
-"इशारों इशारों में धमक देने वाले ,बता ये हुनर तूने सीखा कहाँ से ?
तो नेता जी ने भी तुर्की ब तुर्की जवाब दिया -
’ जुमलों ही जुमलों सब को चराना ,मेरे सर जी! सीखा है तुम ने जहाँ से

कारण ? कारण कुछ भी नहीं । कारण बहुत कुछ । इतने साल ’सत्ता से चिपके रहे .मलाई खाते रहे । जब चुनाव नज़दीक आया तो अचानक ख़याल आया अरे मेरा तो ’सम्मान’ ही नहीं है इस पार्टी में ।आँख उठा कर देख भी नहीं रहे हैं ये लोग हमे तो । अरे भाई ,हम दलित हैं तो क्या--हम शोषित है तो क्या---हम वंचित है तो क्या ---मेरा असम्मान देश के समस्त दलित--शोषित पीड़ित --वंचित लोगों का अपमान है --हम अपने भाईयों का अपमान सहन नहीं-- देश हित का अपमान सहन नहीं कर सकते --
"-- भाई साहब ! दलितों शोषितों वंचितों के लिए तो बहन जी है न देख भाल के लिए"
"-अरे ऊ कब से दलितों की नेता बन गईं--दलितों - वंचितों का सबसे बड़ा नेता ’मैं ’।कल तक हम आप की "आँखों के तारे थे ,--आँखों की पुतली थे --अब --आँखों की किरकिरी बन गए ? अगर मुझे सम्मान जनक ढंग से सीटें न मिली तो गठबन्धन से अलग भी हो सकता हूँ।विकल्प खुले हुए हैं -- मैं ’पद’ का भूखा नहीं ,मैं कुर्सी का भूखा नहीं [शायद मलाई ख़तम हो रही है ] -मैं देश की ग़रीब भाईयों के बारे में सोचता हूँ --बेरोज़गार नौजवानों भाईयों के बारे में सोचता हूँ --किसान भाईयों के बारे में सोचता हूँ । देश हित के बारे में सोचता हूँ ---मेरी पार्टी को 2-सीट दे रहें है-। इतना चिल्लर तो भीखमंगा भी नहीं लेता आजकल ----मात्र 2-सीट ? अगर आप ने 10-15 सीट नहीं दे तो हम आप की आँखों से काजल भी चुरा सकते है ।10-20 एम0एल0ए0 हैं सम्पर्क में मेरे ।हम लोकसभा में ’आँखे नहीं मारते ।--हम आँख मूँद कर सपोर्ट भी नहीं करते -----फिर मेरे मजदूर किसान भाइयॊं का क्या होगा ? मेरी माताओं बहनों का क्या होगा? देश की सेवा का क्या होगा ? ---’ -नेता जी ’आखें दिखा रहे थे और सत्ता पक्ष रहस्य समझ रहा थ।
’--अरे भाई साहब ! देश हित सोचने के लिए और नेता है न -शहर की चिन्ता में काज़ी क्यॊं दुबला
" नेता ? कोन नेता ? मेरे सिवा और कौन नेता ? ---सब झूठ के नेता है --कहते है कि हमें राज्यसभा की सीट दिलवा दो।हमें राजपाल बना दो --हमें उस समिति का अध्यक्ष बना दो ---अरे वो क्या भला करेंगे देश का--??
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ख़ैर सत्ता-पक्ष के गठबन्धन ने उन्हें 3- सीट दे दिया
1-सीट और मिलने से , नेता जी का सम्मान लौट आया -पगड़ी -ऊँची हो गई --उनकी जाति भाईयों का सम्मान लौट आया । समझदार थे-पता था दूसरे दल के गठ बन्धन में जायें --चुनाव के बाद ’मलाई’ मिले न मिले }यहाँ जितना मिल रहा है -उतना तो चाट लें-डकार लें --चमचों में उत्साह दौड़ आया- कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया ---" भईया जी अमर रहें-अमर रहें -जब तक सूरज चांद रहेगा--भईया जी का नाम रहेगा---भईया जी आगे बढ़ो--हम तुम्हारे साथ हैं"--देश का नेता कैसा हो? भईया जी जैसा हो ।-वातावरण ’महक’ उठा।
और नेता जी ने सुबह बयान दे दिया----देश का विकास --देश तोड़क शक्तियों का विनाश कोई कर सकता है -तो हमारा गठबन्धन ही कर सकता है_ सत्तारूढ़ पार्टी ही कर सकती है ---"हम सीटों की संख्या पर नहीं रिश्ते पर विश्वास रखते हैं --- निभाते हैं --हम अपने ग़रीब भाइयों के लिए ऐसी सीटों को दस बार लात मार सकता हूँ -----भारत माता की जय--वन्दे मातरम ---

इधर ’बुधना’ मन ही मन मुस्कराता है

बेख़ुदी बेसबब नहीं ग़ालिब’
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है

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-सुना -कल साधु-सन्तों नें ’आँखें दिखाईं- । अगर ’राम मन्दिर’ नहीं बना तो आगामी चुनाव में क्या मुँह लेकर जायेंगे आप ?
---सत्ता पक्ष का गठ बन्धन व्यस्त हैं -"आँखे दिखाने " में
विरोधी पक्ष की पार्टियाँ मस्त हैं - ’आंखे मिलाने में। भले ही उनकी आँखों का पानी मर रहा हो ।
गाँव का ’बुधना’ त्रस्त है --अपनी आँख के मोतिया बिन्द से-।सोच रहा है कर्जा उतरे तो आपरेशन कराएँ।
"जनता तो पिछले कई दशक से एक ही चेहरा देखते आ रही है--झूट का चेहरा- ।

जब तवक़्को ही उठ गई ’ ग़ालिब’
क्यों किसी का गिला करे कोई


क्या मन्दिर-क्या मस्जिद ? मन्दिर बने न बने --बनते हुए प्रतीत होना चाहिए -- आग जलती रहनी चाहिए।
भारत का लोकतन्त्र आगे बढ़ रहा है इन्हीं ’आँख मिलाने से , आँख -दिखाने से-आँख मारने से --आँख चुराने से ।
अस्तु



-आनन्द.पाठक-

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-01-2019) को "क्या मुसीबत है" (चर्चा अंक-3220) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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