गुरुवार, 30 मई 2019

प्रेम शाश्वत है

प्रेम एक शब्द -
एक नाद है
एक ऊर्जा है
उसे माध्यम चाहिए
पृथ्वी पे
पनपने  के लिए ...
जैसे मैं और तुम !

 प्रेम का
आह्लाद का
कोई स्वरूप नहीं होता
ये निर्गुण निराकार होता  है
ॐ के उस शब्द की तरह
शुद्ध और . सात्विक !

सुनो....
हमारा प्रेम ...
हमारा नेह आह्लाद  ..
शाश्वत है
परमब्रह्म की तरह ...

ये प्रेम हुआ है
 बेसाख़्ता ही  ...
और ये तुमसे
प्बातें करता है
आँखो के ज़रिए
मन के रास्ते ....
और
जुड़  जाते  है तंतु
तुम्हारे मन के ..
मेरे अवचेतन मन से
बिना किसी डोर  के ...
बंधन के ...

जानते हो ?
ये जो अनश्वर
शाश्वत प्रेम है न ?
ये मौन में गुंजायमान है ..
और नाद में ख़ामोश !
चेतना में निष्क्रिय
और
निष्क्रियता में चेतना
का आभास है  !
ये यत्र तत्र सर्वत्र है
व्योम में ..समस्त ब्रह्मांड में ...
आदि से और अनादि तक !

ये मौन नेह तुम्हारा
ये शाब्दिक प्रेम तुम्हारा
प्रतिध्वनित होता  है ...
और रह रह टकराता है
ईश्वर के  हृदय से ...
उनके अंतःकरण से ...

और फिर वो नाद
और वो आह्लाद ...
और दशों दिशाएँ से
प्रेम में तल्लीन में
मुझे ख़ुद में तलाशता
और रह रह पुकारता है  ..
......  ऐ लड़की!
चली आओ ...
उस ऊष्मा को
उस ऊर्जा को
ख़ुद  में प्रवाहित कर
एक नए युग
एक ने ब्रह्मांड का
निर्माण करो तुम !!
निर्वाण करो तुम !

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