शनिवार, 10 अगस्त 2019

लिखती हूँ - लिखती रहूँगी

“मत लिखो !”‬
-चार्ल्ज़ बुकोवस्की ने कहा था,
तब तक कि
जब तक लिखने की
हवस नहीं होती -
यही कहा था उन्होंने !!
और भी बहुत कुछ !
कहा था कि
होते है करोड़ों लेखक
मुझ से जो ख़यालों में
स्वमैथुन करते है
और बन जाते है
सवघोषित लेखक !

मगर चार्ल्ज़,
मैं क्या करूँ ?
जब लार से
टपकने लगते है ये शब्द,
क़लम के मुँह से ,
जब भी कुछ अच्छा पढ़ा
जब भी कुछ अच्छा दिखा !
और तो और
काग़ज़ भी तो संयम
खोने लगता है !
कसमसाने लगता है !
और
सम्पूर्ण महसूस करता है
स्वयं को !
जब शब्द के वीर्य पड़ते है,
उसकी कोरी कोख में !
और
उद्भवती है एक
रचना ...

वो कविता
जो कई दफे
अपंग होती है,
मानसिक तौर पे
अस्वस्थ भी ,
अंधी लूली लँगड़ी रचना
जिसे रचनाकार
या आलोचक फ़ेक देते है
रद्दी में, या फाड़ देते है
अथवा जला देते है ...

मगर
कोई नहीं सुनता
उन मरगिल्ली, अस्वस्थ
अपंग रचनाओं की
ख़ामोश चीख़ों को,
जिनमे लेखक /रचनाकार की
अंतिम हिचकियों की आवाज़
सुनाई देती है !
मैं उन चीख़ों को
रोज़ रोज़ जीती हूँ
अपनी रचनाओं में
जागती सोती हूँ !

सुनो .. चार्ल्स बुकोवस्की!
मैं महज़ लेखिका नहीं हूँ !
जन्मदात्री हूँ !!
शब्दों के काग़ज़ के साथ
प्रणय में उद्भवे
अनगिनत कविताओं की
मैं माँ हूँ !!
मैं भ्रूण हत्या नहीं करती !
मैं अपने
अपंग कुपोषित
मानसिक रूप से कमज़ोर
रचना की हत्या नहीं करूँगी !!


मत मानो मुझे लेखिका
मगर
अपनी रचनाओं की मैं
रचियता रहूँगी
मैं उन गौण क्षुद्र कविताओं की
लेखिका ही रहूँगी !
मैं लिखती हूँ और
मैं लिखती ही रहूँगी

शनिवार, 3 अगस्त 2019

लड़कियाँ अनाज सी होती है

लड़कियाँ 
अनाज के आटे 
सी होती है ..

गाँव की लड़की 
बाजरा मक्का या जवार
होती है 

शहरी लड़कियाँ 
मैदे या गेहूँ सा 
ग़ुबार होती है ...

बेली ही जाती है सब 
रोटी पराँठा 
लिट्टी क़ुल्चे सी 
और 
खाई जाती है 
बस भूख (!) 
मिटाने के लिए ..

वाइरस

तुम्हें खोजते हुए
पहुँच जाना मेरा 
हर बार 
उस क्षितिज पे
जहाँ कदाचित
आदम हौवा 
पहली दफ़े  मिले थे ...

अथक  प्रयास करना मेरा 
हम दोनों के अस्तित्व के 
jigsaw puzzle से 
ख़यालों के 
और रूह के  टुकड़े 
जो कदाचित 
एक दूसरे में 
फ़िट बैठने के 
लिए बने थे 

मगर ये तुम्हारे मेरे 
ख़्यालों के टुकड़े
मायावी से है, जो 
हर बार बदल लेते है 
स्वरूप अपना 
किसी वाइरस की तरह ...

बदल लेते है ये 
अपना आकार 
प्रकार और विचार 
और फिर 
हम दोनो 
फ़िट नहीं बैठ पाते 
उस सामाजिक ढर्रे में ...

टूट जाते है 
दोनो शैने शैने 
और सोचते है 
ये वाइरस कौन था ...
वहम या  अहम !!