शनिवार, 3 अगस्त 2019

लड़कियाँ अनाज सी होती है

लड़कियाँ 
अनाज के आटे 
सी होती है ..

गाँव की लड़की 
बाजरा मक्का या जवार
होती है 

शहरी लड़कियाँ 
मैदे या गेहूँ सा 
ग़ुबार होती है ...

बेली ही जाती है सब 
रोटी पराँठा 
लिट्टी क़ुल्चे सी 
और 
खाई जाती है 
बस भूख (!) 
मिटाने के लिए ..

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-08-2019) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक- 3418) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. मैं आपकी आभारी हूँ कि आपने इस कविता को अपने इस अंक में जगह दी ... आपका प्रोत्साहन यूँ ही बना रहे
      साभार
      संध्या राठौर

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  5. बहुत सुंदर और सटीक रचना! बधाई संध्या जी!

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