रविवार, 20 अक्तूबर 2019

माहिया (कुड़िये)

कुड़िये कर कुड़माई,
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।

धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले।।

गोरी चल लुधियाना,
मौज मनाएँगे,
होटल में खा खाना।

नखरे भारी मेरे,
रे बिक जाएँगे,
कपड़े लत्ते तेरे।।

ले जाऊँ अमृतसर,
सैर कराऊँगा,
बग्गी में बैठा कर।

तुम तो छेड़ो कुड़ियाँ,
पंछी बिणजारा,
अब चलता बन मुँडियाँ।।

नखरे हँस सह लूँगा,
हाथ पकड़ देखो,
मैं आँख बिछा दूँगा।

दिलवाले तो लगते,
चल हट लाज नहीं,
पहले घर में कहते।।

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प्रथम और तृतीय पंक्ति तुकांत (222222)
द्वितीय पंक्ति अतुकांत (22222)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 20 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. दूसरी पंक्ति यदि तुकान्त [हमक़ाफ़िया] हो भी जाए तो कोई मनाही भी नहीं है
    सादर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-10-2019) को     " सभ्यता के  प्रतीक मिट्टी के दीप"   (चर्चा अंक- 3496)   पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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