शनिवार, 2 नवंबर 2019

क्या मैं कयामत हूं

तुम ही कहो न 
क्या मैं ख्वाहिश को
देर तक याद में तेरी ....
जागने की ...
इजाज़त दूं ?

तुम ही कहो न
क्या मैं यादों को
खुदा के सजदे सा
नाम  और दर्ज़ा
इबादत दूं ?

तुम ही कहो न
क्यों इन  हवाओं ने
तुझसे लिपटने की 
बदमाशियां की और 
शरारत क्यूं ?

तुम ही कहो न
क्या ग़ज़ल मैं हूं ?
इक नज़्म सी मैं हूं
रूबाइयों की सी
 क़यामत हूं ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४ -११ -२०१९ ) को "जिंदगी इन दिनों, जीवन के अंदर, जीवन के बाहर"(चर्चा अंक
    ३५०९ )
    पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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