शनिवार, 19 सितंबर 2020

मुहब्बत जाग उठी दिल में --

 ग़ज़ल  : मुहब्बत जाग उठी दिल में --


मुहब्बत जाग उठी दिल में ,ख़ुदा की यह इनायत है ,

इसे रुस्वा नहीं करते ,अक़ीदत है , इबादत है    ।


जफ़ा वो कर रहें मुझ पर ,दुआ भी कर रहें मेरी ,

ख़ुदा जाने इरादा क्या ,ये नफ़रत है कि उल्फ़त है ?


मरासिम ही  निभाने हैं ’हलो’ या ’हाय’ ही कह कर ,

अगर वाज़िब समझते हो ,हमें फिर क्या शिकायत है ।


ज़माने की हवाओं से  मुतस्सिर हो गए तुम भी ,

न अब वो गरमियाँ बाक़ी न पहली सी रफ़ाक़त है ।


कहाँ ले कर मैं जाऊँगा  ,ये अपना ग़म तुम्हीं कह दो ,

तुम्हारा दर ही काबा है ,यही अपनी ज़ियारत है  ।  


रकीबों के इशारों पर ,नज़र क्यों फेर ली तुम ने?

हमीं से पूछ लेते  तुम -’ कहो ! क्या क्या शिकायत है ?’ 


इधर मैं जाँ ब लब ’आनन’ उधर वो रंग-ए-महफ़िल में ,

यही हासिल मुहब्बत का , हसीनों की  रवायत है  ।   


-आनन्द.पाठक-



मरासिम - रस्में

मुतासिर = प्रभावित

रफ़ाक़त =दोस्ती

जाँ ब लब = मरणासन्न स्थिति


4 टिप्‍पणियां: