बुधवार, 3 नवंबर 2021

एक गीत : दीपावली पर---

 [दीपावली की पूर्व सन्ध्या पर ------


एक गीत : दीपावली पर


आज दीपावली, ज्योति का पर्व है

दीप की मालिका हम सजाते चलें ।


आज मिल कर सजाएँ नई अल्पना

झूमने नाचने का करें सिलसिला,

पर्व ख़ुशियों का है और उल्लास का

भूल जाएँ जो कोई हो  शिकवा, गिला ।


मन बँटा हो भले, रोशनी कब बँटी !

प्यार का दीप दिल में जलाते चलें ।


धर्म के नाम पर व्यर्थ उन्माद में

चेतना मर गई, भावना मर गई ,

मन के अन्दर की सब खिड़कियाँ बन्द है

उनके कमरे में कितनी घुटन भर गई ।


सोच नफ़रत भरी है, जहर भर गया

इन अँधेरों को पहले मिटाते चलें ।


झोंपड़ी का अँधेरा करें दूर हम

झुग्गियों बस्तियों में जला कर दिए,

एक दिन चाँदनी भी उतर आएगी

आदमी जो जिए दूसरों के लिए ।


अब अँधेरों में कोई न भटके कहीं

सत्य की राह क्या है ? दिखाते चलें ।


आज दुनिया खड़ी ले के परमाणु बम्ब

ख़ौफ़ फैला फ़िज़ां में जिधर देखिए,

लोग हाथों में पत्थर लिए हैं खड़े

कब तलक बच रहे अपना सर, देखिए ।


विश्व में हो अमन, चैन हो, प्रेम हो

बुद्ध के सीख- संदेश गाते चलें ।


आज दीपावली,ज्योति का पर्व है। दीप की मालिका हम सजाते चलें। 


-आनन्द.पाठक-


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