बुधवार, 10 नवंबर 2021

 

“जय सोमनाथ”

कई वर्षों बाद कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी की लिखी पुस्तक “जय सोमाथ” दुबारा पढ़ी. पहली बार कब पढ़ी थी याद नहीं. कथा इतनी रोचक और रोमांचक लगी कि एक बार पढ़ने के बाद फिर दो-चार दिन बाद तीसरी बार भी यह पुस्तक पढ़ डाली.

किस वीरता से घोघा बापा के समस्त परिवार ने अपने जीवन की आहुति देकर महमूद को रोकने का प्रयास किया, किस तरह  पाटन के महाराज भीमदेव और उनके वीर सैनिकों ने मंदिर को बचाने के लिए भयंकर युद्ध लड़ा, यह सब पढ़ कर मन गर्व से रोमांचित हो जाता है.

पर यह सब मैं क्यों लिख रहा हूँ? कल किसी यू ट्यूब चैनल पर सुना कि एक लेफ्ट-लिबरल ने अपने एक आर्टिकल में दावा किया था कि सोमनाथ मंदिर को बचाने के लिए मंदिर के आसपास बसे अरबी लोग (अर्थात मुसलमान) भी महमूद की सेना के साथ लड़े थे और उन्होंने भी अपने जीवन का बलिदान दिया था.

इस दावे के क्या साक्ष्य हैं, मैं नहीं जानता और न ही मैंने जानने का प्रयास किया. क्योंकि अकसर यह लेफ्ट-लिबरल एक-दूसरे के लेखों को ही साक्ष्य के रूप में उध्द्र्त करते हैं. परन्तु विचार का विषय यह है कि लेफ्ट-लिबरल लोग ऐसी झूठी-सच्ची बातें लिख कर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं? क्या वह यह जतलाना चाहते हैं कि उस समय भी ऐसे मुसलमान थे जो यहाँ के लोगों से  प्रेम करते थे?

शायद लेखक की धारणा सत्य हो. वास्तव में भारत में आज भी अधिकाँश मुसलमान अन्य लोगों के साथ मिलजुल कर रह रहे हैं और रहना चाहते हैं. समस्या यह साधारण लोग नहीं हैं. समस्या वह लोग हैं जो देश का इतिहास बदल कर आक्रान्ताओं का महिमामंडन करते हैं, जो यह मानते हैं कि यहाँ के लोगों को इन आक्रान्ताओं का आभारी रहना चाहिए, जो यह मानते हैं कि इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों, विशेषकर  मुसलमानों, का है, जो कश्मीर और पश्चिमी बंगाल की घटनाओं पर मौनव्रत धारण कर लेते हैं लेकिन २००२ पर अविरल आंसू बहाते हैं, जो मानते हैं कि हिन्दू (और सिर्फ हिन्दू) दिन-प्रतिदिन असहिष्णु होते जा रहे हैं. इनका एजेंडा हम सब को समझना होगा और इनसे सतर्क रहना होगा.

अनुलेख: जय सोमनाथ की कथा के अनुसार मंदिर के एक पुजारी ने ही गज़नी के सैनिकों को अंदर आने का गुप्त रास्ता बताया था. अगर यह सत्य है तो फिर लेफ्ट-लिबरल लोगों को ही दोष क्यों दें. यह भी तो उसी का अनुसरण कर रहे हैं.

     

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