रविवार, 19 दिसंबर 2021

एक ग़ज़ल : वह अधेरों में इक रोशनी है

 


एक ग़ज़ल


वह अँधेरे में इक रोशनी है,

एक उम्मीद है, ज़िन्दगी है ।


एक दरिया है और एक मैं हूँ,

उम्र भर की मेरी तिश्नगी है ।


नाप सकते हैं हम आसमाँ भी,

हौसलों में कहाँ कुछ कमी है।


ज़िक्र मेरा न हो आशिक़ी में,

यह कहानी किसी और की है ।


लौट कर फिर वहीं आ गए हो,

राहबर ! क्या यही रहबरी है ?


सर झुका कर ज़ुबाँ बन्द रखना,

यह शराफ़त नहीं बेबसी है ।


आजकल क्या हुआ तुझ को ’आनन’

अब ज़ुबाँ ना तेरी आतशी है ।



-आनन्द.पाठक- 

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