सोमवार, 31 जनवरी 2022

कैसा सिलसिला है ओ जानां

ये उलझी उलझी  सांसों का 
बेमतलबी सी बातों का 
निगाहों से निगाहों का 
कैसा सिलसिला है जानां ...

खिले खिले गुलाबों का 
मदहोश उन शराबों का 
खत वाली  उन किताबों का
क्या है  सिलसिला  ओ जानां ...

उस फलक  से इस ज़मीन का 
 दिल में शुबाह से यकीन का 
हो प्यार हमें  बड़ा  हसीन सा
चलाओ  सिलसिला अब तो जानां...

4 टिप्‍पणियां: