शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

एक ग़ज़ल : झूठ पर झूठ वह

 नोट - आजकल चुनाव का मौसम चल रहा है ।उसी सन्दर्भ में।

एक ग़ज़ल


झूठ पर झूठ वह बोलता आजकल ,

क़ौम का रहनुमा बन गया आजकल ।


चन्द रोज़ा सियासत की ज़ेर-ए-असर,

ख़ुद को कहने लगा है ख़ुदा आजकल ।


साफ़ नीयत नहीं, ना ही ग़ैरत बची ,

शौक़ से दल बदल कर रहा आजकल ।


उसकी बातों में ना ही सदाक़त रही ,

उसको सुनना भी लगता सज़ा आजकल ।


तल्ख़ियाँ बढ़ गई हैं ज़ुबानों में अब ,

मान-सम्मान की बात क्या आजकल ।


आँकड़ों की वह घुट्टी पिलाने लगा ,

आँकड़ों से अपच हो गया आजकल ।


यह चुनावों का मौसम है ’आनन’ मियाँ ,

खोल कर आँख चलना ज़रा आजकल ।



-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ 

ज़ेर-ए-असर = प्र्भाव से

सदाक़त      = सच्चाई


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