शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

कुछ अनुभूतियाँ

 


कुछ अनुभूतियाँ



1

कोई बची न चाहत मन में 

और न मन में कुछ दुविधा है ,

प्यार-मुहब्बत लगता ऐसे

पल दो पल की नई विधा है ।



2

एक समय था वह भी जब तुम

मेरी ग़ज़ल हुआ करती थी,

साथ रहेगा जीवन भर का-

बार बार तुम दम भरती थी ।



3

सुबह सुबह ही उठ कर तुम ने

बेपरवा जब ली अँगड़ाई,

टूट गया दरपन शरमा कर

खुद से खुद तुम भी शरमाई ।



4

सोच रही हो अब क्या, मुझमें

क्या कमियाँ है, क्या अच्छा  है

नेक चलन, बदनाम है ’आनन’

इन बातों में क्या रख्खा  है ! 


-आनन्द.पाठक-

1 टिप्पणी: