शनिवार, 4 जून 2022

एक ग़ज़ल : तुम्हारी जालसाजी में उन्हें कुछ तो दिखा होगा

 एक ग़ज़ल 

तुम्हारी जालसाजी में उन्हें कुछ तो दिखा होगा ,

उन्हें कुछ तो सबूतों में, बयानों मे मिला होगा ।


बिना पूछॆ सफ़ाई में जो चाहे सो कहो, लेकिन-

धुआँ बिन आग का होता कहाँ ? तुमको पता होगा ।


तुम्हीं मुजरिम, तुम्ही मुन्सिफ़, गवाही में खड़े तुम ही,

सियासत की है मजबूरी ,तुम्हें करना पड़ा होगा ।


हमें तुम क्या समझते हो, हमे सच क्या नहीं मालूम?

"हरिशचन्दर’ नहीं हो तुम ,तुम्हें भी तो पता होगा  ।


तुम्हारी झूठ की खेती, तुम्हारे झूठ का धन्धा ,

तुम्हारा "ऎड" टी0वी0 पर निरन्तर चल रहा होगा ।


वो कह कर तो यही आया 'बदलना है निज़ामत को'

ख़बर क्या थी कि "कुर्सी" के लिए अन्धा हुआ होगा ।


जहाँ अपनी सफ़ाई में सदाक़त ख़ुद क़सम खाती,

समझ लो झूठ की जानिब यक़ीनन फ़ैसला होगा ।


कहें हम क्या उसे ’आनन’,  मुख़ौटॊं पर मुखौटे हैं ,

लिए मासूम सा चेहरा वो सबको छल रहा होगा ।


-आनन्द.पाठक--

शब्दार्थ 

सदाक़त =सच्चाई

निज़ामत = शासन व्यवस्था

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