शनिवार, 15 अक्टूबर 2022

एक ग़ज़ल : सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता

 

ग़ज़ल



सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता ,

ख़ुदा क़सम कि मैं खुद से जुदा नहीं होता ।       1

 

हमारे इश्क़ में शायद कमी रही होगी-

सितमशिआर सनम क्यों खफा नहीं होता ।        2

 

निगाह आप की जाने किधर किधर रहती,

निगाह-ए-शौक़ से क्यों सामना नहीं होता ।        3

 

निशान-ए-पा जो किसी और के रहे होते,

यक़ीन मानिए सर यह झुका नहीं होता ।         4

 

ख़याल आप का दिन रात साथ रहता है,

ख़याल-ओ-ख़्वाब में खुद का पता नहीं होता ।      5

 

नज़र जो आप की मुझसे मिली नहीं होती,

क़रार दिल का मेरा यूँ लुटा नहीं होता ।          6

 

सफ़र हयात का ’आनन’ भला कहाँ कटता,

सफर में साथ जो उनका  मिला नहीं होता ।       7

 

-आनन्द.पाठक-

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