रविवार, 28 जुलाई 2013

“सरस्वती वन्दना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

सरस्वती वन्दना

इस वन्दना को मधुर स्वर में गाया है
अर्चना चावजी ने

मेरी गंगा भी तुम, और यमुना भी तुम,
तुम ही मेरे सकल काव्य की धार हो।
जिन्दगी भी हो तुम, बन्दगी भी हो तुम,
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।

मुझको जब से मिला आपका साथ है,
शह मिली हैं बहुत, बच गईं मात है,
तुम ही मझधार हो, तुम ही पतवार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

बिन तुम्हारे था जीवन बड़ा अटपटा,
पेड़ आँगन का जैसे कोई हो कटा,
तुम हो अमृत घटा तुम ही बौछार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।


तुम महकता हुआ शान्ति का कुंज हो,
जड़-जगत के लिए ज्ञान का पुंज हो, 
मेरे जीवन का सुन्दर सा संसार हो। 
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

तुम ही हो वन्दना, तुम ही आराधना,
दीन साधक की तुम ही तो हो साधना,
तुम निराकार हो, तुम ही साकार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

आस में हो रची साँस में हो बसी,
गात में हो रची, साथ में हो बसी,
विश्व में ज्ञान का तुम ही भण्डार हो।
गीत-गजलों का तुम ही तो आधार हो।।

9 टिप्‍पणियां:

  1. माता के शुभ चरण छू, छू-मंतर हों कष्ट |
    जिभ्या पर मिसरी घुले, भाव कथ्य सुस्पस्ट |
    भाव कथ्य सुस्पस्ट, अष्ट-गुण अष्ट सिद्धियाँ |
    पाप-कलुष हों नष्ट, ख़तम हो जाय ख़ामियाँ |
    करे काव्य कल्याण, नहीं कविकुल भरमाता |
    हरदम होंय सहाय, शारदे जय जय माता ||

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥

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  3. शुभ प्रभात

    भाई हृदय से आभारी हूँ

    सादर

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  4. बहुत सुंदर आगाज सरस्वती वंदना के साथ !

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  5. गुरु जी वाह सुंदर आगाज
    बधाई बधाई

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  6. बहुत सुन्दर सरस्वती वन्दना !
    बहुत बढ़िया सराहनीय कदम ...
    हार्दिक शुभकामनायें!

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