मंगलवार, 30 जुलाई 2013

बापू वापिस आ जाओ




राष्ट्र-पिताजी आप स्वर्ग में,परियों के संग खेल रहे हैं |
इधर आपके , चेले-चांटे ,अरब-खरब में खेल रहे हैं |

बचे-खुचे अनुगामी जितने,जीवन अपना ठेल रहे  हैं |
फटी लंगोटी तन पर लेकर,मंहगाई को  झेल रहे  हैं |

भारत से सम्बन्धित बापू,गणित तुम्हारा सही नहीं था |
कुछ दिन रहता सैन्यतंत्र में,प्रजातंत्र के योग्य नहीं था |

नियमों में पलने की आदत,खाद बना कर डाली जाती |
फिर नेता की फसल उगाकर,प्रजातंत्र में डाली  जाती |

आज सभी को है आजादी,लुटती-फिरती जनता सारी |
मक्खन खाते नेता अफसर,छाछ न पाती किस्मत मारी |

मंहगाई से त्रस्त सभी  हैं,गायब माल नहीं दिखता है |
दाल मिल रही सौ की केजी,आटा तीस रूपये मिलता है |

आलू तीस रूपये तक चढकर,अब नीचे कुछ आ पाया है |
प्याज बिक रही इतनी मंहगी,तड़का तक ना लग पाया है |

बड़ी कम्पनी माल घटा कर,कीमत पूरी ले  लेती  है |
अधिकारी  धृतराष्ट्र  बनाए-,कुछ जूठन उनको देती है |

कर्ज उठाते, नोट   छापते,धन जब जेबों में आता  है |
पैसा ज्यादा,माल अगर कम,मूल्य एकदम बढ जाता  है |

अर्थ-शास्त्री पी.एम. अपने,इतना फण्डा समझ न पाते |
भारत ला कर,एफ.डी.आई,वे विकास का चित्र दिखाते |

धीरे-धीरे देश सिमट  कर-,उन के बन्धन में आया है |
भारत मां को बंधक रखकर,नेता  शर्म   नहीं खाया है |

बेच रहे हैं देश कुतर  कर,अपनी सत्ता  कायम  रखने |
धर्म जाति में नफरत  डालें,मन में दूरी  कायम  करने |

बापू इस स्वतंत्र दिवस पर,तुम लाठी ले वापस आओ |
ठोक पीट कर नेता अफसर,प्रजातंत्र  पटरी पर  लाओ | 
***

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी अनुकम्पा के लिए आपका आभारी हूँ |

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  2. उम्दा पंक्तियाँ .बहुत सटीक और सामयिक ।

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  3. साठ साल से झेल रहे बापू के रिश्तेदारों को
    अब तो धूल चटानी होगी देश के इन गद्दारों को

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