सोमवार, 29 जुलाई 2013

कैसी है ये प्रगति?



सदियों से चली आ रही
भारत की अमिट पहचान
चिरकालीन संस्कृति
और नैतिक मूल्यों की कब्र पर
खिल रहे हैं आज
बेहतर आर्थिक स्थिति
और प्रगति के फूल

सामाजिकता की बलि देकर
कर रहे हैं अब हम
वैज्ञानिक युग में प्रवेश
फेसबुक, ट्वीटर,टूटू पर
ढूँढते हैं हम अपनापन
सगे रिश्तों में नहीं बची
अब कहीं भी संवेदना शेष.

2 टिप्‍पणियां: