गुरुवार, 22 अगस्त 2013

ईश्वर तू ऐसा क्यों करता है

हे ईश्वर
आखिर तू ऐसा क्यूँ करता है 

अशिक्षित ,गरीब ,सरल लोग
तो अपनी ब्यथा सुनाने के लिए
तुझसे मिलने के लिए ही आ रहे थे
बे सुनाते भी तो भला किस को
आखिर कौन उनकी सुनता ?
और सुनता भी
तो कौन उनके कष्टों को दूर करता ?
उन्हें बिश्बास  था कि तू तो रहम करेगा
किन्तु
सुनने की बात तो दूर
बह लोग बोलने के लायक ही नहीं रहे
जिसमें औरतें ,बच्चें और कांवड़िए भी शामिल थे 
जो कात्यायनी मंदिर में जल चढ़ाने जा रहे थे
क्योंकि उनका बिश्बास था कि 
सावन का आखिरी सोमवार होने से  शिब अधिक प्रसन्न होंगें। 
कभी केदार नाथ में तूने सीधे सच्चें  लोगों का इम्तहान लिया 
क्योंकि उनका बिश्बास था कि चार धाम की यात्रा करने से 
उनके सभी कष्टों का निबारण हो जायेगा।
और कभी कुम्भ मेले में सब्र की परीक्षा ली 
क्योंकि उनका बिश्बास था कि गंगा में डुबकी लगाने से 
उनके पापों की गठरी का बोझ कम होगा 
उनको  क्या पता था कि
भक्त और भगबान के बीच का रास्ता 
इतना काँटों भरा होगा 
हे ईश्वर
आखिर तू ऐसा क्यों करता है। 
उने क्या पता था कि 
जीबन के कष्ट  से मुक्ति पाने के लिए 
ईश्वर  के दर पर जाने की बजाय 
आज के समय में 
चापलूसी , भ्रष्टाचार ,धूर्तता का होना ज्यादा फायदेमंद है 
सत्य और इमानदारी की राह पर चलने बाले की 
या तो नरेन्द्र दाभोलकर की तरह हत्या कर दी जाती है 
या फिर दुर्गा नागपाल की तरह 
बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। 
हे ईश्वर
आखिर तू ऐसा क्यों करता है।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 


5 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया -
    आदरणीय मदन जी
    बधाई स्वीकारें-

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब.बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. बहुत सुन्दर रचना..

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी सार्थक प्रतिक्रया हेतु शुभकामनाओं सहित हार्दिक साभार धन्यबाद

    जवाब देंहटाएं
  4. चापलूसी, भ्रष्टाचार , धूर्तता पर चलकर
    फिर केदारनाथ या कावड़िया बनकर
    प्रभु दर्शन को जाता है,
    भूलाजाता है मनुष्य कि
    प्रभु सच्चे भाव को ही मानता है
    सत्य-धर्म से ही प्रसन्न होता है,तथा-
    इन सबसे चिढ जाता है ,
    तभी तो एसा रूप दिखाता है....

    जवाब देंहटाएं