मंगलवार, 6 अगस्त 2013

अपना प्यारा गावं

महंगाई की देख दशा मन हुआ बहुत परेशान | 
अपने प्रियवर से मै बोली सुनिए तो श्रीमान | 

छोड़ चमक दिल्ली की आओ लौटे अपने गॉव | 
यहाँ धूप कंक्रीटो की वहां ठंडी नीम की छावं |  


मिटटी का वहां चूल्हा होगा और हांड़ी की भाजी | 
थैली  वाला दूध नहीं फल सब्जी होगी ताज़ी | 

गोमाता पालेंगे होगा दूध दही भरपूर | 
सदा जीवन होगा होंगे आडम्बर से दूर । 

अपने छोटे से आगन में फल सब्जिया उगायेंगे । 
लेकर सांस स्वच्छ वायु में रोग मुक्त हो जायेंगे | 

मक्के की रोटी के संग सरसों का साग बनायेगे । 
बैठ चबारे  बड़े प्रेम से मिलजुल कर हम खायेंगे । 

पॉप सोंग का शोर नहीं वहां लोकगीत की धुन होगी । 
कर्कश ड्रम की बीट  नहीं वह पायल की रुनझुन होगी । 

रम्भा-समभा छोड़ वह पर भांडे गिद्दे पाएंगे । 
अपनों के संग झूमेंगे नाचेंगे ख़ुशी मनाएंगे । 

अपनी उन यादो से अब में दूर नहीं रह पाऊँगी । 
मैं तो वापस जाउंगी बस मैं तो वापस जाउंगी । 

पतिवर बोले प्रिय तुम्हारा सुन्दर है यह सपना । 
पर वो मंजर छूट चुका है जो था तुम्हारा अपना ॥ 

चमक दमक माना  शहरों की सबको बहुत लुभाती है ।    
पर बूड़े बरगद की हमको याद बहुत ही आती है । 

मेरे प्यारे सखा बन्धुओ इतनी अरज हमारी है । 
उस धरती को मत त्यागो वो धरती सबसे प्यारी है । 

1 टिप्पणी: