इकरारनामा......
आज मैंने एक शक्स को क़त्ल किया है, अपनी मुहब्बत से नहीं, अपनी तिजारत से भी नहीं, एक दोनाली बंदूक से, एक असल हथियार से, आज मैंने किसी के जीने का हक़ छीना है, उसने मेरे कपड़े नहीं फाड़े थे, न ही मेरी चमड़ी उधेड़ी थी, उसने मुझसे मेरा कोई अपना भी नहीं छीना था, उसने न तो कभी मेरा मन दुखाया था, फिर भी मैंने एक शक्स के सीने मे छः गोलियां उतारी हैं, अभी कुछ ही देर पहले..... उसने तो बहुत कुछ दिया था मुझे.... एक पिंजरा.... जो कि आसमान जितना बड़ा था..... मेरे पैरों मे ज़ंजीरें बांधी थीं, और छोड़ दिया था मुझे उड़ने को, आज़ाद..... अपनी ममता से मेरे आँसू पोछे थे, और मेरी आँखों मे भर दिया ज़हर....असली ज़हर.... सौ सौ करैत के काटे से भी जहरीला.... जो दिन भर में हजारों बार मेरे दिल को काट कर गुज़रता था, उसने मुझे सहारा दिया था, एक कैक्टस कि तरह.... जो मुझे संभाले हुए था, हर एक पल मेरे जिस्म को छलनी कर के.... उसने मुझे रास्ता दिखाया था, एक नए नरक का.... जो मेरे देखे हुए सभी नरकों से कई गुना घिनौना था, सड़ता हुआ, बदबूदार...बहुत बहुत गहरा.... मुझे उससे नफरत नहीं थी, उसकी आँखों मे मक्कारी, झूठ, कपट कुछ नहीं था, वो एक अच्छा आदमी रहा होगा.... लेकिन आज, मैंने उस शक्स को क़त्ल कर दिया, दोनाली बंदूक से, छः गोलियां दागी हैं उसके सीने मे, अभी कुछ देर पहले.... यकीन ना आये तो जा कर देख लो... उसकी लाश के पास रखकर आ गयी हूँ, उसका पिंजरा, कुछ ज़ंग लगी ज़ंजीरें, एक बोतल ज़हर, अपनी चमड़ी से चिपके हुए कुछ कैक्टस के काँटे और उसका अपना बदबूदार नरक, एक दोनाली बंदूक के साथ..... ---मौलश्री कुलकर्णी |
सचमुच यह अकविता ही है....बेसिरपैर की...
जवाब देंहटाएं