मंगलवार, 3 सितंबर 2013

श्रीमदभागवत चौदहवाँ अध्याय (श्लोक ११-१५ )

श्रीमदभागवत चौदहवाँ अध्याय (श्लोक ११-१५ )

(११)जब ज्ञान का प्रकाश इस देह के सभी द्वारों (अर्थात समस्त इन्द्रियों )को प्रकाशित करता है (अर्थात जब जीवात्मा के अन्त :करण में ज्ञान के प्रकाश का उदय होता है ),तब सतोगुण को बढ़ा हुआ जानना चाहिए। 

In a body when in all the organs of perception knowledge emanate to show the real nature of things one should know that in that body Sattva has increased in oodles.

(१२ )हे भरत श्रेष्ठ ,रजोगुण के बढ़ने पर लोभ,सक्रियता ,सकाम कर्म ,बे -चैनी ,लालसा आदि उत्पन्न होते हैं। 

O Arjuna !When Rajas is predominant avarice ,vain activity ,observing rituals desiring emolument ,unrest and longing arises in that body .

(१३ )हे कुरुनन्दन ,तमोगुण के बढ़ने पर अज्ञान ,निष्क्रियता ,लापरवाही 

,भ्रम आदि उत्पन्न होते हैं। 

O Arjuna !When Tamas preponderates  indiscretion  ,Inertness ,heedlessness and even delusion arises in that body .

(१४ )जिस समय सतोगुण बढ़ा हुआ हो ,उस समय यदि मनुष्य मरता है 

,तो जीव उत्तम कर्म करनेवालों के निर्मल लोक अर्थात स्वर्ग को जाता है। 

However if the embodied self meets with the dissolution when the Sattva is preponderate then he is born among the immaculate multitudes of erudition .

(१५ )जिस समय रजोगुण बढ़ा हुआ हो ,उस समय यदि मनुष्य मरता है ,तो वह कर्मों में आसक्तिवाले मनुष्यों में जन्म लेता है। तमोगुणों  की वृद्धि के समय मरने वाला मनुष्य पशु आदि मूढ़ योनियों में जन्म लेता है। 

Meeting the dissolution when the Rajas is predominant then he is born among those who are attached to action ;likewise when one meets dissolution when Tamas is predominent then he is born in the wombs of degraded creatures of deficient intelligence. 

ॐ शान्ति 


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