मंगलवार, 3 सितंबर 2013

वफ़ा के नाम से डरते हैं .....

गमदीदा मोहब्बत के,वफ़ा के नाम से डरते हैं |
बेदर्द जमाने में  ,खत-ओ-पैगाम से डरते हैं ||1

दीदार में दिए के हम, पतंगा-से जलते हैं |
रातों को आहट में, हम जुगनू-से जलते हैं ||

रजनी के आँचल में,  आहें तो भरते हैं |
करवट में उड़ाएं नींद, उन यादों से डरते हैं||

मगरूर हैं अदाओं में, हमें जो इंकार करते हैं|
हरे जख्म करे हर बार, उसी मुस्कान से डरते हैं||

चुपके से आओ यार इल्तिजा तेरे नाम करते हैं|
खामोश फिज़ाओं में अब हम कोहराम से डरते हैं|

''आनन्द'' मिला दिन-रात, जिसे विसाले -नाम करते हैं|
दानिस्ता नैन किए दो चार, मगर अब अन्जाम से डरते हैं||

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-09-2013) गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का -चर्चा मंच 1359 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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