मंगलवार, 10 सितंबर 2013

अपनी बात

दोस्तो की भीड़ मे भी एक दोस्त की तलाश है मुझे
अपनो की भीड़ मे भी एक अपने की प्यास है मुझे, 
छोड आता है हर कोइ समन्दर के बीच मुझे, 
लडना और जीतना चाहता हूँ इन अन्धेरो के गमो से, 
अब तो बस एक शमा के उजाले की तलाश है मुझे, 
अपनी हर ज़िन्दगी में तंग आ चुका हूँ इस बेवक्त की मौत से मै, 
अब अपनी इस ज़िन्दगी में एक हसीन ज़िन्द्गी की तलाश है मुझे, 
क्या पागल और दीवाना हूँ मै, सब यही कह कर सताते है मुझे, 
सादर स्नेह सहित, 
आपका स्नेहाकांक्षी दोस्त 
--ललित चाहार--

6 टिप्‍पणियां:

  1. --सुन्दर ग़ज़ल है ..बधाई ....कुछ समीक्षा है.....

    -----अपनी हर ज़िन्दगी में तंग आ चुका हूँ इस बेवक्त की मौत से मै, ---- क्या अब तक की सारी जिंदगियां याद हैं .....भई ?

    --अन्धेरो के गमो से = गम के अंधेरों से ..

    ---क्या पागल और दीवाना हूँ मै, सब यही कह कर सताते है मुझे, ---अंत में 'मुझे' अनावश्यक है...

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