गौड़ीया सम्प्रदाय जिस राधा भाव की बढ़ चढ़ के प्रशंशा करता है अनेक संत जिसका गुणगान करते हैं वह राधा भाव आखिर क्या है ?
श्री राधारानी कृष्ण की दिव्य शक्ति हैं जिनका एक मात्र लक्ष्य अपने परम प्रिय की नि :स्वार्थ भक्ति है.वास्तव में दिव्य प्रेम राधारानी की सहायक शक्ति है। इसीलिए उनमें भक्ति का परमउत्कर्ष देखने को मिलता है। इसका दिग्दर्शन कृष्ण के प्रति उनकी अतिशय चाहत के रूप में होता है।
और्वस्तोमात्कटुरपि कथं दुर्बलेनोरसा मे ,
ताप : प्रौढो हरिविरहज : सह्यते तन्न जाने।
निष्क्रान्ता चेद्भवति हृद्याद्यस्य धूमच्छटापि ,
ब्रह्मांडानां सखिकुलमपिज्वालया जाज्वलीति।
कृष्ण के बिछोड़े में राधा रानी के हृदय में जो प्रेमाग्नि सुलगती है वह इतनी उद्दीप्त है यदि उसके ताप की धुंध मात्र भी उसकी दिव्य देह से उड़के इस कायनात का रुख कर ले तो ये सृष्टि भस्म हो राख बन जाए। ऐसी है श्री राधा की कृष्ण के प्रति चाहत।
राधा की भक्ति का उत्कर्ष उद्दात्त प्रेम का शिखर है यहाँ निस्वार्थ समर्पण है प्राप्ति की इच्छा नहीं है अपने लिए कुछ भी। बस देना ही देना है प्रेम का शिखर।
कृष्ण की ख़ुशी ही राधा की खुशहाली है। निसिबासर कृष्ण को प्रसन्न वदन रखना ही राधा का ध्येय है।
गोपियों में यही राधा भाव थोड़ा कम तीव्रता लिए है संतों में इसका आवेग और भी कम है। राधा शिखर हैं इस प्रवेग का लालसा का जिसे :
मदनाख्या महाभाव भक्ति भी कहा गया है ,इस राधा भाव को ।
यही राधा भाव उन सभी संतों की प्रेरणा का स्रोत बना है जिन्हें ईश्वर तत्व की प्राप्ति हुई है।
कृष्ण और राधा का यही अशरीरी देहेतर दिव्यअनुराग राधा भाव है।
ॐ शान्ति
और्वस्तोमात्कटुरपि कथं दुर्बलेनोरसा मे ,
ताप : प्रौढो हरिविरहज : सह्यते तन्न जाने।
निष्क्रान्ता चेद्भवति हृद्याद्यस्य धूमच्छटापि ,
ब्रह्मांडानां सखिकुलमपिज्वालया जाज्वलीति।
कृष्ण के बिछोड़े में राधा रानी के हृदय में जो प्रेमाग्नि सुलगती है वह इतनी उद्दीप्त है यदि उसके ताप की धुंध मात्र भी उसकी दिव्य देह से उड़के इस कायनात का रुख कर ले तो ये सृष्टि भस्म हो राख बन जाए। ऐसी है श्री राधा की कृष्ण के प्रति चाहत।
राधा की भक्ति का उत्कर्ष उद्दात्त प्रेम का शिखर है यहाँ निस्वार्थ समर्पण है प्राप्ति की इच्छा नहीं है अपने लिए कुछ भी। बस देना ही देना है प्रेम का शिखर।
कृष्ण की ख़ुशी ही राधा की खुशहाली है। निसिबासर कृष्ण को प्रसन्न वदन रखना ही राधा का ध्येय है।
गोपियों में यही राधा भाव थोड़ा कम तीव्रता लिए है संतों में इसका आवेग और भी कम है। राधा शिखर हैं इस प्रवेग का लालसा का जिसे :
मदनाख्या महाभाव भक्ति भी कहा गया है ,इस राधा भाव को ।
यही राधा भाव उन सभी संतों की प्रेरणा का स्रोत बना है जिन्हें ईश्वर तत्व की प्राप्ति हुई है।
कृष्ण और राधा का यही अशरीरी देहेतर दिव्यअनुराग राधा भाव है।
ॐ शान्ति
ब्रह्म में ढूंढो पुराननि ढूंढो वेद ऋचा सुनी चौगुनी चायन |
जवाब देंहटाएंशास्त्र सुने बहु ज्ञान गुने गीता सुनी औ सुनी रामायन |
पायो- सुन्यो कतहू न कितै वो कैसो सरूप औ कैसो सुभायन |
देख्यो दुरयो वह कुञ्ज कुटीर में बैठो पलोटतु राधिका पायन ||