सोमवार, 30 सितंबर 2013

मिलता तुझको वही सदा जो तू बोता है...ग़ज़ल ..डा श्याम गुप्त ...

सकल सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होता है |
बीज नित्य नव आशाओं के मानव बोता है |

जाने कितनी नयी नयी सुख -सुविधा भोगीं ,
कष्ट पड़े फिर भला आज तू क्यों रोता है |

सुख साधन के हेतु उचित-अनुचित सब भूला,
जो भी जग को दिया वही तो अब ढोता  है |

उचित व अनुचित मानव तभी समझ पाता  है,
जब उसको अनुभव कष्टों का भी होता है |

ईश्वर की है देन,  कष्ट से क्या घबराना,
खरा वही है जो न कष्ट में,  धीरज खोता है |

ईश्वर का कर धन्यवाद,  दुखों के कारण,
इस असार जग का सत-ज्ञान तुझे होता है |

कष्ट पड़ें,  चिंता क्या, आने-जाने हैं,
कष्टों से प्रभु पापकर्म तेरे धोता है |

सब कुछ ईश्वर के ही ऊपर छोड़ श्याम तू,
मिलता तुझको वही सदा जो तू बोता है ||







6 टिप्‍पणियां:

  1. सहज बोध और गीता ज्ञान की काव्यात्मक अभिव्यक्ति। सुन्दर रचना।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (01-10-2013) मंगलवारीय चर्चा 1400 --एक सुखद यादगार में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. श्रीमान आपकी लेखनी अत्त्यन्त ही रोचक और शिक्षाप्रद है,ह्रदय से आभार व्यक़्त करता हूँ

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