दिल में थोडी सी पीर जिंदा रख।
यानी अपने आंखों का नीर जिंदा रख।।
छू न पाएंगे गम तेरा दामन।
अपने दिल का फकीर जिंदा रख।।
जान भी दे-दे दोस्ती के लिए।
यूं वफा की नजीर जिंदा रख।।
सोच मत लोग कह रहे हैं क्या।
सिर्फ अपना कबीर जिंदा रख।।
याद रखेंगे लोग सदियों तक।
शर्त ये है अपना जमीर जिंदा रख।।
रमेश पाण्डेय
पूरी गज़ल काबिले दाद एक भी शैर भर्ती का नहीं सब असरदार।
जवाब देंहटाएंश्री वीरेन्द्र जी आभार
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (30-10-2013) त्योहारों का मौसम ( चर्चा - 1401 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
श्री शास्त्री जी चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंश्री सुशील जी धन्यवाद
हटाएंlajawaab gazal hai ...
जवाब देंहटाएंश्री नासवा जी धन्यवाद
हटाएंPicture is Nice
जवाब देंहटाएंश्री सक्सेना जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएं