मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

"राजेंद्र यादव " साहित्यजगत की अपूरणीय क्षति

नयी कहानी आंदोलन के मित्रत्रयी में से एक राजेंद्र यादव का निधन हो गया. इस खबर से मैं बहुत दुखी हूं. राजेंद्र यादव का व्यक्तित्व अद्भुत था. वे एक सहज व्यक्ति थे, साहित्य के खेल तमाशों से उन्हें कभी कोई लेना-देना नहीं रहा. वे बेंत लेकर चलते जरूर थे, लेकिन कभी बेंतबाजी नहीं की. उन्होंने हंस पत्रिका के जरिये स्त्री विमर्श और दलित विमर्श को स्थापित किया. इसके पहले इन विषयों की गूंज सुनाई नहीं पडती थी. साहित्य जगत को राजेंद्र यादव ने एक कहानीकार, उपन्यासकार, अनुवादक और संपादक के रूप में जो कुछ दिया वह अविस्मरणीय है. नये कथाकारों को स्थापित करने में भी उनकी अहम भूमिका है. मैत्रयी पुष्पा और प्रभा खेतान जैसे साहित्यकार आज उन्हीं की वजह से स्थापित हैं. राजेंद्र यादव का निधन साहित्यजगत की अपूरणीय क्षति है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. उनके साहित्यकार रूप को प्रणाम लेकिन जाते जाते विवादों के केंद्र में वे आ गए यह भी उतना ही

    दुर्भाग्य पूर्ण है साहित्य के लिए।समजा के लिए नारी विमर्श का पुरोधा अंदर से लम्पट दिखता हो।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (30-10-2013) त्योहारों का मौसम ( चर्चा - 1401 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. प्रख्यात साहित्यकार राजेन्द्र यादव का जाना।
    हिन्दी साहित्य की अपूरणीय क्षति
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    विनम्र श्रद्धांजलि।

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