शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

हिन्दू परम्परा में अलावा इनके सैंकड़ों और ग्रन्थ भी रचे गए हैं लेकिन वैदिक ग्रन्थ ज्ञान के अंतिम स्रोत कहे जाते है। अक्षय खजाना कहा गया है इन्हें मानव के चिरंतन कल्याण का।

स्मृति ग्रन्थ ,शाद दर्शन ,अन्य धर्मों 

के ग्रन्थों का सार (समापन क़िस्त )

स्मृति ग्रन्थ :

पुराण और इतिहास स्मृति ग्रंथों के ही हिस्से हैं। स्मृति ग्रन्थों का प्रगटन भगवान् ने सीधे सीधे नहीं किया था। इन्हें पहले संतों के हृदय में रोपा था। संतों ने  इन्हें अपनी स्मृति से लिखा इसीलिए इन्हें स्मृति ग्रन्थ कहा गया। 

शाद दर्शन :स्मृति ग्रन्थों के बाद छ :ऋषियों ने हिन्दू दर्शन के विशेष पहलुओं को लेकर लिखा 

इन्हें ही शाद दर्शन कहा गया। इस प्रकार से हैं ये ग्रन्थ :

(१)मीमांसा दर्शन :महर्षि जेमिनी कृत ये ग्रन्थ अनुष्ठानिक कर्तव्यों और उत्सवों का उल्लेख 

करता 

है। 

(२)वेदान्त दर्शन :महर्षि वेदव्यास कृत इस ग्रन्थ में परम सत्य की व्याख्या की गई है। 

(३)न्याय दर्शन (न्यायिकदर्शन  ):महर्षि गौतम कृत है. जीवन और परम सत्य के तर्क शाश्त्र को 

समझाता है यह ग्रन्थ। 

(४ )वैशेषिक दर्शन :महर्षि कणाद ने लिखा इस ग्रन्थ को। यह सृष्टि विज्ञान और सृष्टि के उद्भव से ताल्लुक रखता है।  सृष्टि के   विभिन्न अंगों की तात्विक व्याख्या करता है। सृष्टि के अलग अलग तत्वों को समझाया गया  है इस ग्रन्थ में। 

(५)योग दर्शन :महर्षि पातंजलि द्वारा  लिखा गया है यह ग्रन्थ यह परमात्म  मिलन  के आठ अंग(तरीके ) बतलाता है इसीलिए इसे अष्टांग योग भी कहा गया। इसमें कायिक आसन भी हैं। 

(६ )सांख्य  दर्शन :महर्षि कपिल इसके रचता हैं। प्रकृति से यह इस कायनात (ब्रह्माण्ड )के उद्भव की बात करता है उस आदिम अणु (Primeval atom )की बात करता है जो सृष्टि का समस्त गोचर और अगोचर अंश (पदार्थ और ऊर्जा ,दृश्य और अदृश्य )छिपाए हुए था। 

हिन्दू परम्परा  में अलावा इनके सैंकड़ों और ग्रन्थ भी रचे गए हैं लेकिन वैदिक ग्रन्थ ज्ञान के अंतिम स्रोत कहे जाते है। अक्षय खजाना कहा गया है इन्हें मानव के चिरंतन कल्याण का।

अन्य धर्म वंशों के  ग्रन्थ :

कुरआन (कुरान ):मरुस्थल के वीरानों में अपरिष्कृत जीवन से रु ब रु लोगों के लिए उद्घाटित किया  गया था यह ग्रन्थ। इस्लाम इसमें आरम्भिक , बुनियादी बड़ी साधारण  सी बातें  बतलाता है।  दोजख में जाने का बारहा भय दिखलाकर इस्लाम अल्लाह की इबादत के लिए कहता है। फिर कहा  गया है जो अल्लाह को मानते हैं वे बहिश्त को जायेंगे जहां उन्हें जन्नत की हर ख़ुशी एशो आराम और हूरें मिलेंगी निरंतर भोग के लिए। यहाँ ईश्वर के प्रति स्वार्थ रहित प्रेम की बात नहीं है।सांसारिक सुख भोग के लिए प्रेरित किया गया है। 

बाइबिल भी स्वर्ग नर्क की बात करती है। बेशक यह परमेश्वर के प्रति पाकीज़ा प्रेम से आरम्भ होती है। नीति शाश्त्र और नैतिक  आचरण की बात भी करती है। 

""Thou shall not steal thy neighbor's manservant ,maidservant ,ox or ass (Ten Commandments )."

मछुआरों से ज़िक्र किया गया है इस किताब का। इसलिए परमेश्वर  के बारे में परम सत्य (ऊंचे ते ऊंचे सत्य )की बात नहीं की गई है।

जबकि गीता का एक मात्र श्रोता अर्जुन है जो एक श्रेष्ठ आत्मा है। अर्जुन को कहीं भी भगवान् अ-चौर्य का सन्देश नहीं देते हैं ऐसा करना उसकी तौहीन होती। यहाँ तो भगवान् को व्यक्ति कैसे प्राप्त हो यह बात की गई है। जीवन का विज्ञान समझाया  गया है। भगवान् का गीत है गीता। इसीलिए कहा जाता है जहां कुरआन शरीफ संपन्न होती है वहां से बाइबिल शुरू होती है और जहां बाइबिल संपन्न होती है वहां से गीता का श्री गणेश होता है। और जहां श्रीमद भगवाद गीता संपन्न होती है वहां से श्रीमदभागवतम  शुरू होती है। यहाँ श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्रण है। यह भगवाद कथा संत सुखदेव राजा परीक्षित को सुनाते हैं जिनके पास कथा सुनने के लिए सिर्फ सात दिन का समय  था सात दिन के बाद सर्प दंश से उनकी मृत्यु हो जानी थी इसलिए वह इस संसार से पूर्णतया विरक्त  थे।

वैदिक गर्न्थों के अनुशीलन के लिए एक गुरु का होना बतलाया गया है ताकि इनके मर्म तक पहुंचा जा सके। कथा सत्संग इसमें सहायक सिद्ध हो सकते हैं।   

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